पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
दूसरा हिस्सा
२४
 

________________

दूसरा हिस्सा बरसाठ फ़ा दिल था और जमीन अच्छी तरह नर्म हो रही थी इसलिये श्रम की भारी मैं घूम घूम कर कमला ने मालूम कर लिय। कि किशोरी यहाँ से रथ पर सवन्न होकर गई और उसके साथ में कई सयार भी है क्योकि रथ के पहियों का दोहरा निशान और बैल के खुर जमीन पर साफ मालूम पड़ते थे, इसी तरह घोहों के वर्षों के निशान भी अच्छी तरह दिखाई पड़ते थे । | कमला कई कदम उस निशान की तरफ चली गई जिधर २५ गया था श्रोर बहुत जल्द मालूम कर लिया कि किशोरी को ले जाने वाले किस तरफ गये हैं। इसके बाद वह पीछे लौटी और सीधे अस्तबल में पहुँच एक तेज घोड़े पर बहुत जल्द चारनामा कसने का हुक्म दिया है। मला का हुक्म ऐसा न था कि कोई उससे इन्कार करता । घोडा बहुत जरद कस कर तैयार किया गया और कमला उस पर सवार हो वैज्ञी के साथ उसे तरफ रवाना हुई जिधर रथ पर सवार होकर किशोरी के जाने का उसे विश्वास हो गया था। पाच कोस बराबर चले जाने वाद कमला एक चौराहे पर पहुँची जहा से चाए तरफ का रास्ता चुनार को गया था, दाहिने तरफ की सड़क रीव होते हुए गयानी तक पहुँची थी, तथा सामने का रास्ता एक भयानक चुंगल से होता हुआ कई तरफ की फूट गया था। | एक चौमुहाने पर पहुँच कर कमला की और सोचने लगी कि किधर जाऊँ ? अगर चुनार वाले किशोरी को ले गये थे तो इसी बाई सरफ से गए होग, अपर किशोरी की दुश्मन माधवी ने उसे फंसाय होगा तो रय दाहिनी तरफ से गयाजी गया होगा, सामने की सहक हैं रथ ले सुन चाला तो कोई स्याल में नहीं आता क्योकि यह जंगल के स्था बहुत पुराने और पथरीला हैं । चन्द्रमा निम्न आया पा र रोशनी अच्छी तरह फैल चुकी थी। मला घोड़े से नीचे उतर वाई' मोर दाहिनी तरफ जमीन पर रय ।