पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/११३

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दूसरा हिस्सा
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दूसरा हिस्सा **खवरदरि जो पिस्तौल भरने का इरादा किया है, देख मेरी पिस्तौल में दूसरी गेली अभी मौजूद है !' नकली कमला भी यह सोच कर चुपचाप पडो रह गई कि अब वह अपने दुश्मन को कुछ नहीं बिगाड़ सकती क्ष्योंकि पिस्तौल को दोनों गोलिया बद हो चुकी थी और घोड़ा उसका मर चुका था ! | पिस्तौल के इलावे दोनें की कमर में खञ्जर भी था मगर उसकी जरूरत न पड़ी । असली कमला ने ललकार कर पूछा, “सच बता तू कौन है ? | नकली कमल को जान दे देना कबूल था मगर अपने मुंह से यह बताना मज़ा न था कि वह कौन हैं अमूली कमला ने यह देख अपने घोड़े का ऐसा झपेटा दिया कि वह किस तरह संग्इल न सकी और जमीन पर गिर पड । जने तक वह होशियार होकर उठना चाहे तब तक असली कमला झट घोड़े से कूद उसकी छतों पर सवार दिखाई देने लगी । | असली कमज़ ने जबर्दस्तो उसकी नाक में बेहोशी की दवा हूँ। टो और जप वह बेहोश हो गई तो उसकी छाती पर से उतर कर अलग खटी हो गई है। असली कमला जब उसकी छाती पर सवार हुई तो उसने उसे अपनी ही सूरत को पाया, इसलिए समझ गई कि यह कोई ऐयार या ऐयार है, सिवाय इसके किशोरी की सखि को जुभी उसने मालूम कर ही लिया था कि कोई उ8 का सूरत बेन किशोरी को ले गया, अ उसे विश्वास हो गया कि किशोरी को इमी ने धोखा दिया । । । थोड़ी देर बाद कमला ने अपने बटुए में से पानी को भरी छोटा स। चीतल निकाली र नकली फमला का मुंह धोकर साफ किया, इसके बाद चकमक से श्राप निफलि बत्ती जला कर पहिचानना चाहा कि यह कौन हैं गरि [ना ऐसा किये चद्द केवल चन्द्रमा ही की मदद से पहिचान ली गई कि माघ को सुई ललिता है, क्योंकि कमज़ा उसे अच्छी