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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सन्तति तरह जानती थी और वर्ष’ साथ रहने के सिवाय वरावर मिला जुला भी फरती थी । मना को यह विश्वास तो हो ही गया कि किशोरी को धोखा दे कर ले जाने वाली यही ललिता है, मगर इस बात का ताजु । बना ही रहा कि वह सामने से लौट कर आती हुई फ्र्यों दिखाई पड़ी । कमल। यह भी जानती ११ कि चाहे जान चली जाय मगर ललिता असन : फभी न बतावेगी, इसलिए उसकी जुनो पता लगाने का उद्योग करना उसने व्यर्थ समझा और अपने साथ ललितई के घोड़े पर लाद पर * तरफ पलट पड़ी । | रति बिल्कुन बीत चुकी है बल्कि कुछ दिन निकल आया था, जब ललिता को लादे हुए कमला घर पहुँची। यहाँ किशोरी के गायन होने से वडा ही हाहाकार मचा हुआ था ! उसकी खोज में कई आदमी चारों तरफ जा चुके थे । किशोरी का नाना रणधीरभि भारी जमींदार होने के सिवाय वड़ा है। दिमागदार श्रौर जबर्दस्त श्रादमी था। उसने यही समझ रवा था कि शिवदत्त के दुश्मन बीरेन्द्र सिंह की तरफ से यह कार्रवाई की गई है मगर क्षेत्र हलिता को लिए हुए कमला पची मीर उसकी जुबान सन्न हाल मालूम हुश्रा तय माधवी की बदमाशी पर वह बहुत चिंगा । वह माधवी की चालचलने पर पहले ही से रंज था मगर कुछ बोर न चलने से लाचार या, श्रीज उसको गुस्से के मारे इस यात्र का बिल्कुल ध्यान न रहा कि मधवी एक मारी प्य की मालिक हैं और जबर्दसा फोन रखती है । उमने धमला के मुँह से सव ल सुनते ही तलवार हाथ में ले कसम खा ली कि जिस त• हो सपेगा अपने हाथ से माधवी का सिर फट फलेना एढा करूगा । | ललित एक अन्धे। फोटरी में ईद की गई झीर रणधीरसिद्द की श्रद्धा पा फमला अपने यड़े भाई हरनामसिंह को साध से किशोरी की मदद को पैदज़ ही रवाना हुई है।