पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/११६

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सन्तति | कुछ अागे जाकर दूसरी पाजेब और उससे थोटी दूर पर किशोरी के ग्रौर कई गहने इन लोगों ने पापे । अब ६ मला फो किशोरी के इसी राह में जाने को पूरा विश्वास हो गया और वे दोनों बेधडक कदम बढ़ाते हुए राजगृही की तरफ रवाना हुए। छठवां बयान दुअर इन्द्रजीतसिंह अभी तब उभी रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। चाहे जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन कट्रिना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय ती पर दिन बाकी रहने पर भी कुअर इन्द्रजंतसिंह कमरे के प्रदर गुनहले ५की चारपाई पर आराम कर रहे हैं शोर एक लाड़ी धीरे धीरे पता भले रही है। हम टोक नइ यह सेफने कि उन्हें नाद टवाये हुए है या जान बूझ कर मठियाचे पड़े हैं अंर अपनी इदस्मिती के जाल को सुलझाने की तरकीय च रहे हैं। वैर इन्हें इस तरह पढ़ रहने दीजिए और आप जरा तिसमई के कमरे में चल कर देखिए, कि वई माधवी के गथ मिस तरह की बातचीत कर रही है। माधव का हसता हुशा हरा धई देता है कि बनिस्पत और दिन के न च त रखुश हैं, मग तिलोत्तता के चेहरे से रिसी तरह की खुशी न माग होती ।। माधवी ने तिलोत्तमा का हाथ पकड र कहा, “सखी, याज तुझे इतना खुश नहीं पाती हैं जितना में खुद हैं। तिनक[{ तुम्हारा पुश होना बहुत टीक है । | माधवा० । या तुम्हें इम बात पर खुशी नहीं है कि किशोरी में फन्दे में फस गई और एक दैदी की तरह मेरै य तहखाने में बन्द है । तिलोत्तमा० । इस बात को मुझे भी खुशी है ।। माधवी० । तो २ल किस बात का ३१ हैं समझ गई, अभी तक ललिता के लौट कर न झाने का वैशर तुई दुःख हो ।