पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/११९

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दूसरा हिस्सा
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दूसरा हिस्सा ललिता मेरी मददगार थी, सो वह भी किशोरी को हँसाने में श्राप पकड़ी गई, अब अप्रैलो मैं क्या क्या करूँ ? । | माधव० । त् सब कुछ कर सकती है हिम्मत मत हार, है। यह तो बता कि वीरेन्द्रसिंह के ऐयार यहाँ यी कर शाये श्रौर अब क्या कर | तिलोत्तमा० 1 अच्छा सुन में सव कुछ कहती हैं। यह तो मैं नहीं। जानती कि पहिले पहिल यहा कौन अाया, हाँ जब से चपला श्राई है। तप से मैं थोड़ा बहुत हाल जानती हूँ । माधवो० । ( चॉक कर ) क्या चपला यहाँ पहुँच गई । | तिलोत्तमा० 1 हॉ पहुँच गई, उसने यही पहुँच कर उस सुरग की दूसरी ताल भी तैयार कर ली जिस राह से १ श्राती जाती है और जिस में तैने किशोरी को कैद कर रखा है । एक दिन रात को अब तु इन्द्रनीतसिंह को सीता छोड़ दीवान साहब से मिलने के लिए गई तो वह चपला भी इन्द्रजीतसिंह को साथ ले अपनी तीली से सुरंग का ताला जोन तेरे पीछे पीछे चली गई और छिप कर तेरी और दीवान साह्य की कैफियत इन दोनों ने देख ली । तू यह न समझ कि इन्द्रजीतसिंह बेचारे सीधे साधे हैं और तेरा हाल नहीं जानते, वे सब कुछ जान गये। माधव० । ( कुछ देर तक सोच में इसी रहने वाद ) तैने चपला को कैसे दे ? | तिलोत्तमा० । मेरा बल्कि ललिता का भी कायदा है कि रात को तीन चार टके उट कर इधर उधर घूमा करती हैं ? उस समय में अपने दलान में खम्भे की झाइ में खड इधर उधर देख रही थी जब चपला श्रौः इन्द्रजीतसिंह तेरा हाल देख कर मुरग से लौटे थे। उसके बाद ये दोनों बहुत देर तक नहर के किनारे खड़े बातचीत करते रहे, बस उसी समय से में होशियार हो गई श्रीर अपनी कार्रवाई करने लगी। माध० } इसके बाद फिर भी कुछ हुशा !