पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१२४

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तीसरा हिस्सा तफ में जीती ६ कुन्दन किशोरी घा कुछ बिगाड़ नहीं सक्ती और न उसे कोई दूसरा ले जा सकता है । किशोरी इन्द्रजीतसिंह की हैं श्री चेशक उन तक पहुचाई जाय। १ । किशोरी नै पहिचान लिया कि यह लानी की श्रावन है ! लाली ने यह बात बात धीरे से कही थी मगर किशोरी बहुत पास पच चुकी थी इसलिए बखूबी सुनकर पहिचान की कि लाली की आवाज है मगर यह न मालूम है कि दूसरा आदमी कौन है । लाली अपने कमरे के पास इ थी, बात कह कर तुरंत दो चार सीढ़िया चद्द अपने कमरे में घुस गई और उसी जगह से एफ आदमी निकल कर पेड़ों की श्राद्ध में छिपता हया वाग के पिछल। तरफ जिधर दरवाजे में बराबर ताला बन्द रहने वाला मकान था चला गया, मगर उसी समय जोर से चोर चोर !” ३ श्राधाज श्राई । किशोरी ने इसे आवाज को भी पहिचान कर मालम कर लिया कि कुन्दन हैं जो उस ग्रादमी को फँसाया चाहती है । किशोरी न लपफत हुई अपने कमरे में चली आई और चोर चोर की ग्रीवाज बढ़ती ही गई ।। किशोरी अपने कमरे में श्रीकर पर्लंग पर लेट रही ः उन चात पर गौर करने का जो भी दो तीन घण्टे के हेर फेर में देख नुन चुफी थी । वह मन ही मन कहने लगा---'कुन्दन की तरफ भी गई और लाली की तर; भी गई, जिससे मालूम हो गया कि वे दोनों ही एक एक झाम से जान पट्टिान रोती जो बहुत चिप कर इस मकान में प्राता है। कुन्दन के साथ जो अादमा मिलने आया था उसकी जुबानी न कुछ भने सुना उगसे जाना जाता था कि कुन्दन मुझसे दुश्मनी नहीं उता बल्कि मेरबानी फा वतीच किया करती है । इसके बाद जब लाली की तरफ गई तो वहा की बातचीत से मालूम हुआ कि नाली सच्चे दिल से मैः१ अदगार है और देन शायद दुश्मनी की निगाह में मुझे देखती है । दृा ठक, अब सम, बेशक ऐसा ही होगा ।