पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१२६

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तीसरा दिया शिौरी० । ज्ञो दो, मुझे तो अब पांच सात दिन तक नारी की कोई जरूरत नहीं है। किशोरी को इस बात ने लाल और कुन्दन दोनों की चैका दियो । लाल के चेहरे पर कुछ हंसी 4 मार कुन्दन के हरे का रन बिल्कुल ही उड़ गया था क्योंकि उसे विश्वास है गया क्रि किया ने भी रात की कुल वात सुन ली । कुन्दन की घबराहट श्रीर परेशानी यह तक बढ़ गई कि किसी तरह अपने की सम्हाल न सी श्ररि विना कुछ कहे चहाँ से उड़ कर अपने कमरे की तरफ चली गई । अब लाली श्रीर किशोरी में बातचीत होने लग:--- लाली । मालूम होता है तुमने भी रात को कुछ ऐयारी की है। किशोरी० | हो । कुन्दन की तरफ छिप कर गई थी ।। लाली० । तर तो तुम्हें मालूम हो यि होगा कि कुन्दन तुम्हें घोखा दिया चाहती है। किशोर० । पहिले त यह साफ न जान पडता या मगर र तुम्हारी तरफ गई और तुमको विस में बाते करते सुना तो विश्वामि हो गया कि इस मइल में केवल तुम्हीं से मैं कुछ भलाई की उम्मीद कर सकती हैं। ला० । ठीक है, कुन्दन । कुल बाते नुमने नहीं सुनी, फ्या मुझसे भी...,.( रुक कर ) और जाने दौ । है। अब वह समय आ गया कि तुम र इम दोनों यहां से निकल भागें । क्या तुम मुझ पर विश्वास रखती हैं ? किशोर० । चेशक तुमसे मुझे नैफ़ी की उम्मीद है मगर कुन्दन बहुत nि Pई मलिग होती है। लाली० } घड् मेरा कुछ नहीं कर सकतीं । किशोरी० [ अगर तुम्रा हाल किसी से कद के दो १ । लाली । अपनी जुमान से वह नहीं फट् सुफळी, योकि वह मेरे पों में उतनी र फेस हुई है जितना में उसके पंजे में ।।