पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१३०

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तीसरा हिस्सा थोड़ी देर तक बातचीत होती रही है इसके बाद लाली उठ कर अपने मकान में चली गई और मामूनी कामों की पिक ३ लगी है। इस मामले के तीसरे दिन आधी रात के समय लीला अपने मकान से बाहर निकली और किशोरी के मकान में प्राई । चे लोचिया जो किशोरी के ५४ा पहरे पर मुकर्रर ध। गहरी नींद में पटी खुद ले रही थीं अगर किशोरी की प्रास्त्रों में नींद का नाम निशान है, वह पल पर लेट देवजे की तरफ दे रही थी । उस समय हाथ में एक छोटी सी गठडी लिए लाल ने कैमरे के अन्दर वैर रखा जिसे देखते ही किगरी उठ खड़ी हुई शोर बढी मुहब्बत के साथ हाथ पकड़ लाली को अपने पास बैठाया । किशोरी० | प्रौफ, ये दिन बडी कठिनता से बाते, दिन रात दर लगा ही रहता था ।। लाली० । सौ क्यों ? किशोरी ! इसीलिये कि कोई उसे छत पर जाकर देख न है कि किसी नै सच लगाई है। लाली । उई, कौन उस पर जाता है और फोन देता है, ल श्रव दैर करना मुनाशिये नहीं । किशोरी० । मैं तैयार हैं, कुछ लेने की जरूरत तो नहीं है ? लाली १ जरूरत की सब चीजें मैंने पाम है, तुम पर चल चलो ! लाली र लिशोरी व से रवाना हुई और पेड़ों की अडि में होती हुई उस मकान के पिछवाड़े पहुंची जिसकी छत में लाल ने सींध लगाई थी । कमन्द लगा कर दोनों उपर चढ़ीं, फसन्द खीच लिया और उसी कमन्द के सारे धि वी राह दोनों मकान के अन्दर उतर गई। यहां कि अनायब मा फो देर किशोरी की अजब हालत हो गई मगर तुरत ही उसका ध्यान दूसरी तरफ ना पड़ा । किशोर प्रोर रुस्लिी जैसे ही उस मकान में शुन्दर ठत वैसे ही बाहर से किसी के ललकारने की आवाज आई, साथ ही फुर्ती