पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१३४

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७५, दूसर। हिरा नई अोरत को साथ ले उस पोट्स के बाहर चली गई। वे कि स उन दोनों श्रीरत का मैं देखते ही रह गये मगर कुछ बहने या पूछने की हिंमत न पड़ी । | जय दो घण्टे तक दोनों प्रौरत में से कोई न लौटी तो ३ टाकू लोग भी उठ खड़े हुए र सह के बाहर निकल गये ! उन लोग है इशारे और प्राकृति से मालूम होत! था कि वे दोनों अँरिता के काय इस तरह पर चले जाने से तय कर रहे हैं । यह हाल देख कर देवभिह भी वहां से चल पड़े और वह होते होते राजमहल में प्रा पहुँचे । तेरहवां बयान कुँअर इन्द्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी जान से शाशिक हो ही चुके थे ! इस बीमारी को हैरत में भी उनकी याट इन्हें सतह हो गई र | यह जानने के लिये बेचैन हो रहे थे कि इस पर क्या बीती, वह् किन वस्था में कहा है, थोर शय उमकी सूरत व किस तरह देरी नसीब हो । जय वक वे अच्छी तर दुसल नहीं हो जाते, न तो खुद के नाने के लिए हुक्म ले सरते थे और न क्रिसी याने से अपने प्रेम सायी ऐयारे रोगिहू के ही कहीं ज्ञ राजे थे । इस बीमारी की हालत । समय पर उन्होंने सिंह ने सुन्न राल मालुम र लिया थ; } यह सुन कर कि किशोरी को दीवान इग्निदत्त उठा ले गया, यते । पदेशन में मगर यह खबर उन्हें कुछ कुछ दास देती थी कि नपनी क्षमा यौर परत बद्रीना इमई छुने की फिक्त ३ लगे हुए हैं श्रेरि राजा वीरेन्द्रसिं, फो भी यई न ज से लगी हुई हैं कि किस तरह बने सियदत्त की लड़की क्रिी की गाद! अपने लट्ट के साथ करके | शिवदत्त वो नीचा दिखा र दिर करे ।। र ग्रनिन्दसिंह ने 17 अब इश्क के मैदान में वैर रक्जर, मगर