पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१३६

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--- -'म 1५।। दूसरा हिस्सा सुकर कके बिना बाहर ताला लगाये उसी वरद्द छोड़ दिया गया जैसे पहिले या बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह ने उसी के दाने पर अपना पलंग शिया और सारी रइत जागते रह गये ।। प्राधी रात बीत गई मगर कुछ देखने में न श्राया, तब बीरेन्द्रसिंह अपने बिस्तर पर से उॐ श्रर कमरे में इधर उधर घूमने लगे । घण्टे भर बाद उस फोटो में से कुछ खटके की सो अवाज आई । वीरेन्द्रसिंह ने फौरन तलवार उठा ली और धारासिंह को उठाने के लिए चले मगर वट को अवाज पा तारासिंह पहले ही से सचेत हो गये थे, अब हाथे में बुजुर ले ईन्द्रसिं६ के साथ टलने लगे । । श्राधी घडी के बाद जोर खटकने की आवाज इस तरह पर हुई जिससे साफ मालूम हो गया कि किसी ने इस कोठडी १॥ देवाला भीतर ने दद कर लिया । थोडी ही देर बाद पैर के धमाधम की आवाज भीतर से आने लगी, मान चार-पाच श्रादमी भीतर उछल कूद रहे हैं। बीरेन्द्रॐ f६ मोठा के दचाळे के पास गये शोर हाथ का धक्का देकर किया। इन ची भरर भीतर से बन्द रहने के कारण देवाजा न हुए, लाचार उसो गई बड़े हो मोतर की श्राद्ध पर गौर करने लगे । र पैरों की धमाधम की आवाज बढ़ने लगी और धीरे धीरे इतनी प्रादा हुई कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह गौर नन्दसिद्द भ उठे श्रौर कोठडी हे ग जा कर अड़े हो गये । फिर दवा मा खोजने की कोशिश की गई। मर न खुका । भीतर नट चल्द पैर उठने शीर पटकने की आवाज से भी इो निधी हो गया कि पन्थर हटाई हो रही है ! थी ही देर ६६ तर बरे की झनझनाइट में सुनाई देने लगी । २३ भातर लडाई होने में किन तरी के न हो । प्रानन्दसिंह ने चार कि दवा के न पा कर उ चुपचाप व तोटा हाय मगर वीरेन्द्रसिं-६ मर खड़े "द सुनते हैं ।