पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१३७

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चन्द्रकान्ता सन्तति यकायक घमघमाहट की आवाज़ बढ़ी और तब सन्नाटा हो गया । धडी भर तक ये लोग बाहर खड़े रहे मगर कुछ मालूम न हुश्री और ने फिर किसी तरह की प्राइट या आवाजे ही सुनाई दी । ति भी सिर्फ दो घण्टे बल्कि इससे भी कम बाकी रह गई थी । पहरे वाले टहल टहल कर अच्छी तरह से पहरा दे रहे हैं या नहीं यह देखने के लिए तारासिंह बाहर गये और सभों को अपने काम पर मुस्तैद पाकर लौट आये । इतने ही मैं कमरे का दर्वाला खुना और भैरोसिंह को साथ लिए देवीसिंह आते हुए दिखाई पड़े। वे दोनों ऐयार सलाम करने के बाद बीरेन्द्रसिंह के पास बैठ गये मगर यह देख कर कि यहां अभी तक के लोग जाग रहे हैं ताज्जुवा करने लगे । देवी० 1 श्राप लौग इस समय तक जाग रहे हैं ? | वीरे० । हाँ, यहाँ कुछ ऐसा ही मामला हुया कि जिससे निश्चिन्त हो सो न सके । देवी० ) सो ६या । ३० । खैर तुम्हें यह भी मालूम हो जायगा पहिले अपनी हाल सो फहो । ( भैरोसिंह की तरफ देख कर ) तुमने उस औरत को पहिचान १ | भै० | जी , ब्रेशक बद्दी औरत है जो यह आई थी, बल्कि वहाँ एक अौर श्रीरत भी दिखाई दो } वीरे० 1 यहाँ से जाकर तुमने क्या किया और क्या क्या देखा सो खुनामा कह जाश्रो । भैरोसिंह ने जो कुछ देखा था कहने बाद यहाँ का हील पूछ । वीरेन्द्रसिंह ने भी यहाँ की कुल कैफियत कद्द सुई और बोले कि 'हम यदी राह दे रहे थे कि सवेरा हो जाये और तुम लोग भी यह जी) ते इ5 कोटी को वोलें और देखें कि क्या है, कहीं से किसी के में ने का पता लगता है या नद्दई ।।