पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१४२

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्सा हमेशा रिया लोगों के घर अकेले पहुंच कर तहकीकात किया करते ये उसी तरह आज भी सिर्फ दो अर्दली के सिपाहियों को साथ ले इन दोन सेवा के फेर में श्री घर से निकल पड़े थे । कोतवाल साह ने जब साधवी को पहिचाना तो अपने सिपार्थोिं को उसके सामने ले जाना मुनासिब न समझा और अकेले ही भाधवी के पास पहुचे । देखा कि हकीकत में उन्हीं की तस्वीर सामने रखे माधवी उदास वैठी हैं। कोतवाल साइव को देखते ही माधवी उठ खड़ी हुई और मुहब्बत भरी निगाहों से उनकी तरफ देख कर बोली :-- “देखो मैं तुम्हारे लिये कितनी बेचैन हो रही हूँ पर तुम्हें जरा भी खबर नही !” | कौत० | अगर मुझे यकायक इस तरह अपनी किस्मत के जागने की खबर होती तो क्या में लापरवाह वैठा रहता १ कभी नहीं, मैं तो आप हो दिन रात अपसे मिलने की उम्मीद में अपना खून से रहा था। | माधवी० | ( हाथ का इशारा करके ) दे ये दोनों स्वादमी बड़े ही बदमाश है, इनको यहा से चले जाने के लिए कहो तो फिर हमसे तुमसे बातें होगी । | इतना सुनते ही भैरोसिंह श्रीर तारासिंह वहा से चलते बने, या चपला जो साधवी की सूरत बनी हुई थी कोतवाल को बातों में फमाये हुए वहा से दूर एक गुफा के मुहाने पर ले गई श्रौर बैठ कर बातच.त 1. करने लगी । चपना माधवी की सूरत तो बनी मगर उनकी श्री माधव की उन्न में हुत कुछ फर्क था। कोतवाल भी बड़ा धूर्त और चालाक प्रा । सूर्य की चमक में जब उसने माधवी को सूरत ग्रन्छ। तर देवी और ना में भी कुछ फ# पाया तो फौरन उसे खुका पैदा हुआ और वह वदे गौर