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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति से उसे सिर से पैर तक देख अपनी निगाह के तराजू में तौलने और जाँचने लगा | चपला समझ गई कि शव कोतवाल को शक पैदा हो गया । देर करना मुनासिने न जान उसने जफ़ील ( सीटी ) बजाई । उसी समय गुफा के अन्दर से देवीसिंह निकल आये और कोतवाल साहब से तलवार रख देने के लिए कहा ।। कोतवाल ने भी जो सिपाही और शेरदिल शादमी था, बिना लड़े भिड़े अपने को कैदी बना देना पसन्द न किया और म्यान से तलवार निकाल देवीसिंह पर इमल किया | थोड़ी ही देर में देवीसिंह ने उसे अपने वक्षर से जख्मी किया और जमीन पर पटक उसकी मुश्कै बधि डाली । । कोतवाल साह्य का हुक्म पा मैं हि और तारासिंह जब उनके सामने से चले गये तो वहाँ पचे जहाँ कोतवाल के साथी दोनों सिपाही खड़े अपने मालिक के लौट आने की राह देख रहे थे। इन दोनों ऐया ने उन सिपाहियों को अपनी मुश्के बंधवाने के लिए कहा। मगर उन्होंने इन दोनों को साधारणु समझ मजूर न किया और लइने भिड़ने को तैयार हो गये। उन दोनों की मौत आ चुकी थी, अाखिर मैरोसिंह और ताराहि के हाथ से मारे गये, मगर उसी समय बारीक अवाज में किसी ने इन दोनों ऐया को पुकार कर कहा, “भला भैरोसिंह और तारासिंह, अगर मेरी जिन्दगी है तो पिना इसका बदला लिए न छोगी !” भैरोसिंह ने उस तरफ देपा जिधर से श्रीवाल अाई थी । एक लउफा भागता हुआ दिखाई पडा । ये दोनों उसके पीछे दौड़े भगर पा न सके कि उस पहाडी की छोटी कन्दरा और खोह में न मालूम । कहीं छिप उसने इन दोनों के हाथों से अपने को बचा लियः ।। पाठक समझ गए हैं कि इन दोनों ऐयारों को ऐसे समय पुकार कर चिताने यानी वही तिलोत्तमा है जिसने बात करते करते माधवी से इन दोनों ऐयारों के हाथ कोतवाल के फँस जाने का समाचार कहा था !