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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तत्रिं इधर कोतवाल साहब ॐ गिरफ्तार होने से और उनके सिपाहियों की लाश मिलने से शृद्दर में हलचल मच रही थी । दीवान साहब वगैरह इस खोज में परेशान हो रहे थे कि हम लोगों का दुश्मन ऐसा कौन आ पहुँचा जिसने कोतवाल साहू को गायब कर दिया है। कई दिन के बाद एक दिन आधी रात के समय भैरोसिंह तारासिंह पण्डित बद्रीनाथ देवीसिंह और चपला इस तालाब पर बैठ श्री पुस में सलाह कर रहे थे और सोच रहे थे कि अब के अरे इन्द्रजीतसिंह के पास किस तरह पहुँचना चाहिये और उनके छुड़ाने की क्या तरकीब करनी चाहिये। चपला० । अफसोस, मैंने जो ताली तैयार की थीं वह अपने साथ लेती थाई नहीं तो इन्द्रजीतसिंह कुछ न कुछ उस ताली से जरूर काम निकालते । अब हम लोगों को वहाँ तक पहुँचना बहुत ही मुश्किले हो गया । | बद्री० | इस पहाड़ी के उ। परि ही तो इन्द्रजीतसिंह हैं ! चाहे यह पहाडी कैमी ही बैदे क्यों न हो मगर इमलोग उस पर पहुँचने के लिये चढ़ने उतरने की जगह बना ही सकते हैं । भैरोसिंह० | मगर यह काम कई दिनों का है।। | तारासिं० । सब से पहिले इस बात की निगरानी करनी १हिये किं माधवी ने जहाँ इन्द्रजीतसिंह को कैद कर रखा हैं यहाँ कोई ऐस मदं न पहुंचने पावे जो उन्हें सता सके, औरतें यदि पॉच सी भी होगी तो कुछ न कर सकेगी । देवी | कुअर इन्द्रजीतसिंह ऐसे चोदे नहीं है कि यकायक किसी के पद १ मा ना मगर फिर भी हम लोगों को होशियार रहना चाहिए, श्रान फन मै उन तक पहुंचने का मौका न मिलेगा तो हम लोग इस घर को उजाः पर दालने शीर दीवान साइव वगैरह को जहन्नुम में मिला देंगे !