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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति कहा, “वाह वाह वाह, आप भी यहां पहुच गए ! सच पूछो तो यह सय फसाद तुम्हारी हीं खही किया हुआ है ।। भैरो० ! जिस तरह मेरी आवाज तूने पहिचान ली उसी तरह तेरी मुह्त ने मुझे भी कह दिया कि तू कमला है ! कमल० । वस सि, रहने दीजिये, आप लोग बड़े मुहब्बती हैं इसे में खूर जानती हूँ । भैरो० { जब जानती ही हो तो ज्यादे क्यों कह १ कमला० ] कहने का मुह भी तो हो । | भैरो० । कमला, में तो यही चाहता हूँ कि तुम्हारे पास बैठा बाते ही कर रहूँ मगर इस समय भौका नहीं है क्योंकि ( हाथ का इशारा करके } पण्डित बद्रीनाथ देवीसिंह तारासिंह और मेरी सा वहा बैठी हुई हैं, तुमको तालाब में जाते श्रौर नाकाम लौटते इम लोगों ने देख लिया और इसी से हम लोगों ने मालूम कर था कि तुम माधवी की तरफदार नहीं हो अगर होतीं तो सुरग बन्द किये जाने का हाल तुम्हें जरूर मालूम होता ।। कमला० ) क्या तुम्हें सुर ग बन्द करने का हाल मालूम है ? भैरो० ] हा हम लोग जानते हैं। कमला ! फिर ऋग्र क्या करना चाहिये ? भै० 1 तुम वही चली चल जहा हम लोगों के संगी साथी हैं, उसी जगह मिल जुल के सलाह करेंगे । कमला० | चलो में तैयार हैं। सिंह कला को लिए हुए अपनी मा चपला के पास पहुचे । ग्रौर पुकार कर कहा, “मर, यह कमला है, इसका नाम तो तुमने सुना | 47 हा । इसे व जानती हूं। यह कह चपला ने उठ के मन के गले लगा लिया और कहा, 'टी अच्छी तरह तो है।