पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१४८

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दूसरा हिस्सा
 

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४१ दूसरा हिस्सा में देरी बड़ाई बहुत दिनों से सुन रही हूँ, भैरो ने तेरी बड़ी तारीफ की। थी, मेरे पास बैठ गौर कट्स किशोरी कैसी है ? | कमला० । ( बैठ कर ) किशोरो का हाल क्या पूछती ही ! वह चेचारी तो माधवी के केंद्र में पड़ी हैं, ललिता इन्द्रजीतसिंह ने नाम का घोर दे कर उसे ले आई। भैरो० 1 ( चाक फर ) हैं, क्या यहा तक नौवन पहुंच गई ! कमला० । जो होमैं व मौजूद न थी नहीं तो ऐसा न होने पाता ।। | भैरो० । खुलामा हाल को क्या हुशा ।। कमला नै सय हाले किशोरी के धोजी जाने श्रीर ललिता के पकड़ लेने का सुना र पहा, “च सय ६टा ( भैरोPि की तरफ शार पर है } इन्हीं मचाया हुआ है, न यह इन्द्रजीतश्विइ बन कर शिवदत्तगढ़ जाते न घेचारी फिरी की यह देश होतो !' | चपला | हों में सुन चुकी हैं। इसी कार पर बेचारी को शिवदत्त ने अपने यहाँ से निकाल दिया । वैर ने यई वटा काम किया कि ललिता को पकड़ लिया, अब हम लोग अपना काम सिद्ध कर लेंगे । मला० | आप लोगों ने क्या क्या किया और *प्रय यहाँ क्या करने का इरादा है पन्ना ने भी अपना श्रीर इन्द्रजीतसिंह का सम हाल कह सुनाया । भी देर तक बातचीत होती है । यह की सुरेदी निकला है। बातो थी कि ये लोग वहाँ से उखड़े हुए और पहाडी की तरफ चले ।। नौवां बयान कुर इन्द्रजीतसिंह व दंत करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माघ । सुरक्ष का ताला खोल दीवान से मिलने के लिये महल में जाय तो अपना २ दिऊँ । तिलोत्तम) के दोशियार कर