पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१५२

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दूसरा हिस्सा
 

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४६ दूसरा हिस्सा चपला० ! को हो, प्रत्र क्या कर ही सकते हैं ! मल० । वैर जो हो। देखा जायग, जल्दी नीचे उतरो ।। इम खुशनु श्रौर भ्यालीशान मकान के चारो तरफ बाग था। निस चा३। तरफ ऊँ ऊँची चहारदीवारिया बनी हुई थी । वार हैं पृरय तपः बस ट्रा फाटक था लद बारी बारी से बीस श्रादमी हाथ में नंगी तलवारे लिए घूम घूम कर पहरा देने थे । चपला श्री कमभा एमन्द के हा बाग 5 पिछली दोवार लान फर यह पची ६ शरीर इस समय भी ये चारो उर? तरफ से निकल जाया चाहते थे। हम यह कहना भूल गए थे कि बाग के चारो कोनों में चार गु| टिया बनी हुई थी जिसमें रॉ सियादियों का डे या यौर फुल तिलोत्तमा के हुक्म से वे सभी दम तैयार रहते थे । तिलोत्तमा ने उन ग फो यह भ प ६ ला या कि जिस समप में अपने बनाये हुए यम के गो को जमीन पर पटके और उराको भारी आवाज तुम लोग सुन, पन हाथ में नई तलवारे लिये बाग के चारो तरफ ले जाया और जिसे प्रादगं को आते जाते दे तुरंत फ़िार कर लो । चारो दमी मुरंग का दवाजा खुला छोडनाचे उतरे र कमरे के वाइर छ। बग की पिछली दिवार की तरफ जैसे ही चलें कि तिलोत्तमा १५ नजर पट्टी । चपना पक्ष रपयन करके कि रन बहुत ही बुरा हुश्री तिलोत्तमा की तरफ लपकी और इसे पकना चाई मगर वह शैतान लोगर्ट दी रह चफर मार निरन ही गई श्री एयः किनारे पर राने से ५३१ हुगा एफ द् जर्मन पर पटक जिसकी भारी भावान चारो तरफ ३ ६ र उग्र व मुकाबिक सिपाहियों ने होशियार हो कर चारो तरफ से बाग को घेर लिया ।। । तिनत्तमा के भाग कर निकन जाते दो ने दागे शादमी जिनके गे " हाथ में नगी तयार लिए, इन्द्रजीतमिह में साग की पिछली या दो तर्फ ३ ला मर रोदर फाटक को सरफ लपके मगर बदा