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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति पाँचते ही पहरे वाले सिपाहियों से रोके गये और मार काट शुरू हो गई । इन्द्रजीतसिंह ने तलवार तथा चपला और कमला ने खञ्जर चलाने में अच्छी बहादुरी दिखाई। हमारे ऐयार लोग भी जो बाग के बाहर चारों तरफ लुकें छिपे खड़े थे, तिलोत्तमा के चलाए हुए गोले की अवाज सुन और किसी भारी फसाद का होना खयाले कर फ टक पर आ जुटे और खञ्जर निकाल माधवी के सिपाहियों पर टूट पड़े। बात की बात में माधवी के बहुत से सिपाहियों की लाशें जमीन पर दिखाई देने लगा और बहुत बहादुरी के साथ लड़ते भिडते हमारे बहादुर लोग किशोरी को साथ लिये निकल ही गए । | ऐयार लोग तो दौइने और भागने में तेज होते ही हैं, इन लोग वो भाग जाना कोई आश्चर्य न था, मगर गोद में किशोरी को उठाये इन्द्रजातभिह उन लोगो के बराबर की दौड़ सकते थे और ऐयार लोग भी ऎसी अवस्था में उनका साथ कैसे छोइ सक३ ४ १ लाचार जैसे बना उन दोनों को भी साथ लिए १६ मैदान का रास्ता लिया । इस समय पूरव की तरफ सूर्य को लालिमा अच्छी तग्ह फैल चुकी थी । | माधवी के दीवान अग्निदत्त का मकान इस बात से बहुत दूर न था इौर वह बड़े सवेरे उठा करता था | तिलोत्तमा के चलाए हुए गोले की श्रा उसके कान में पहुच ही चुकी थी, बाग के दर्वाजे पर लडाई होने की खबर भी उसे उसी समय मन गई । वह शैतान का बच्चा बहुत ही दिलेर अौर लडाका या, फौरन दाल तनचार ले मकान के नीचे उतर शायी शीर अपने यहा रहने वाले कई सिपाहियों को साथ ले बा के दजे पर पहुचा । देखा कि बहुत से सिपाहियों की लाशें जमीन पर पई। हुई हैं और दुश्मन का पता नहीं है ।। वाग के चारों तरफ से हुए सिपाही भी फाटक पर छा जुटे थे जो गिनत में एक सौ से ध्यादै थे। अग्निदत्त ने सभा को ललकारा और