पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१५६

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्स; माधवी० } क्या दीवान साहब मुझसे इस तरह की ३मुरीवतो करें । तिलो० | अगर तुझे उन पर भरोसा है तो रह र देर कि क्या क्या होता है, पर मैं तो अब एक मिनट भी टिकने वाली नहीं । | माधवी० अगर किशोरी उसके हाथ न पड़ गई होती तो मुझे किसी तरह की उम्मीद होत और कोई नाना भी कर सकती, मगर अब सौ••••• इतना पड़ माधवी चेतर रोने लगी, यहाँ तक कि हिचकी बँध गई र तिनलमा के पैर पर गिर कर बोली : तिलोत्तमा, मैं कसम पाती हैं कि आज से तेरे हुक्म के खिलाफ कभी कोई काम न करूंगा।' तिला० । अगर ऐसा है तो मैं भी कसम खाकर कहती हैं कि तुझे फिर इर्म दर्जे पर पचाऊँगी अौर वीरेन्द्रसिंह के ऐया श्रीर दीवान साह से भी ऐसा दिला हूँगी कि वे भी याद करेगे ।। | माधवी ! बैंशुक में तेरा हम मानेगी "५ ॐ कहेंगी । करू । तिनो | अच्छा तो आज रात को यहां से निकल बनना चाहिये र जहा तक जमा पूंजी अपने साथ ले चलते बने ले लेना चाहिये । माधव० | बहुत अच्छा में तैयार हैं जब चाहे चलो, र यह त क कि मेरी इन सखी सहेलियों की क्या दशा होंगो १ ० । चु न रोग करने से जो पल सत्र गते ३ में ये भी } भोगे । २ मा कहाँ तक ग्रीन कग १ ज पने पर प्रा बनती तो को किसी की पर नहीं लेता । | दोधान अग्निदत किशोर को लेकर भा३ ने सीधे अपने गई नै भ्र हुने । ३ शिव को दूते पर ऐते मोदित हुए कि नोबदन को में जाती रही 1 रिदियों ने इन्जीतसिंह श्री उनके ऐसा को गिरफर किया या नहीं या उनकी दौलत का को क्या दशा हुई इसको