पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१५८

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दूसरा हिस्सा
 

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५४ दूसरा हिस्सा में है गई थी कि जब मैरे चलाये पम के गोले की प्राधाज तुम लोग सुनो तो फौरन मुस्तैद हो जाम्रो और जिस शाते जाते देखो गिरफ़ार कर लो ।। अब दीवान साहब का क माधवी श्री तिलोत्तमा के ऊपर हुआ और देर तक सोनने विचारने के इद उन्होंने निश्चय कर लिया कि इस चखे का हाल ३शक ये दोनों पहिले दी से जानती थी मगर यह भेद मुझसे छिपाये रखने का कोई विशेम कारण अघश्य है ।। चिराग जलने के बाद प्रिन्निदत्त ने घर पहुंचा। किशोर के पास न कर निराले में अपनी दो को बुला कर उसने पूछा, उस ग्रौरत का जुनी उराका कुछ हाल चाल तुम्हें मालूम हुश्रा या नहीं ? अग्निद की ली ने कहा, 4, उसका हाल मलम हो गया, वह गरिब शिवदत्त की लड़की है और उसका नाम क्शिो है। जि बीरेन्द्रसिंह के लडके इन्द्रजीतहि पर रानो माधवी मोहित हो गई थी र उनके अपने पहा कि सरह से फैंस ला फर ६ ६ रस्ते । ५ । इन्द्रजीतसिंह को प्रेस किशोरी पर घr इसलिए उसने लता को भेज कर धोखा दे किशोरी को भी अपने पन्दे में फंसा लिया था । यद् ११ फई दिनों से यहां कैद थी नीर वीरेन्द्रसिंह के देयाः लोग भी कई दिनों से इस शहर में टिके हुए थे 1 किसी तरह मौका मिलने २१ इन्जीवसिंह किशोरी को ले पो से बाहर निकल थाये र यहाँ तक नौबत पहुंची ।" राजा वीरेन्द्र श्रीर उनके ऐसा का नाम रुनि मारे र के अग्निदत्त फाप उठा, १दन के रोंगटे खड़े हो गए, घयदाया हुआ बाहर निरुद्ध या ३ अपने दीवानाने में पहुच मसनद के ऊपर गिर भूप पास अधई २५त तक यही सोचता ६ गया कि अब क्या करना चाइये ।। शनिद सभा गया कि कोतवाल साइन को जरूर वीरेन्द्रसिंह •