पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१६०

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्सा भयानक सूरत फा श्रादमी उसके गले पर खुसर पैर रहा था । इसे देखते ही वह चेक पटी । 'टर श्रीर चिन्ता ने उसे ऐसी पटका कि बुखार चढ़ प्राया, मगर थोड़ी ही देर में चंग हो घर के बाहर निकले फिर तहकीफात करने लगा ! ग्यारहवाँ बयान हम ऊपर के बयान में सुबई की सीनरी लिप फर कह ये है कि राजा वीरेन्द्रसिंह कुँअर भानन्दसि चौर तेनसिंह सेना सहित किमी तरफ फो जा रहे हैं । पाठक तो समझ ही गये होगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चदाई की है और बेशक ऐसा ही है भो । राजा वीरेन्द्रसिंह ने यकायक माधी को गजधानी गार्ज पर धावा कर दिया है जिसका लेना इम समय उन्होंने बहुत ही मज समझ रखा था, क्योंकि माधवी के चारु चलन की पर उन्हें बवून लग गई थी । वे जानते थे कि २१ज फाज पर ध्यान न दे दिन रात देश में इसे रहने वाले राजा क सय कितना कमजोर हो जाता है, यत को ऐसे राजा से तिनी नफस हो त है, थर टूमदे नेफ धीर धर्मात्मा राजा के झा पचने के लिए, वे लोग कितनी मन्नतें मानते रहते हैं ।। वीरेन्द्रसिंह की पाल महुत ही ठीक ५।। या दखल करने में उनको जरा भी तकलीफ न हुई, किसी ने उनका मुकाबला न यि । एक तो उनका बढ़ा चढ़ा प्रताप ही ऐसा था कि 'कोई मुकाबला करने का सरिर भी नहीं कर सकता था, दूग दिल रिझाय। 'श्रीर फैन तो दाह्तो थी कि बीरेन्द्र में ऐसा कोई यहाँ का भी राजा हो । चाहे दिन रात ऐश में ये ग्राम के नशे में चूर में वाले मानिक के कुछ म वयर में हो र ? हे अटारों और गजर्मचारियों ८ मध र ६ अर इद्रीतः५६ के विचचि ९ १बर लग