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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति चुकी थी और उन्हें मालूम हो चुका था कि आजकल बीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग राजगृही में विराज रहे हैं। | राजा वीरेन्द्रसिंह ने चैरोक टोक शहर में पहुँच कर अपना दखल जमा लिया और अपने नाम की मुनादी करवा दी । वहा के दो एक राजकर्मचारी जो दीवान अग्निदत्त के दोस्त और खैरख्वाह थे रग कुरंग देख फर भाग गये, बाकी फौज अफसरों श्रौर रैयत ने उनकी अमलदारी खुशी खुशी कबूल कर ली जिसको हाले राजा बीरेन्द्रसिंह को इसी से मालूम हो गया कि उन लोगों ने दर्वार में बेखौफ और हँसते हुए पहुँच कर मुबारकबादी के साथ नजरें गुजारी ! विजयादशमी के एक दिन पहले गया का रज्यि राजा बीरेन्द्रसिंह के फव्जे में आया और विजयादशमी को अर्थात् दूसरे दिन प्रातःकाल उनके लड़के अनिन्दसिंह को यहाँ की गद्दी पर बैठे हुए लोर्यों ने देखा तथा नजरे दीं । अपने छोटे लड़के के अर अनिन्दसिंह को गया की गही दे दूसरे ही दिन राजा वीरेन्द्रसिंह चुनार लौट जाने वाले थे, मगर उनके २वाना होने के पहले ही ऐयार लग जख्मी और बेहोश कुँअर इन्द्रजीतसिंह को लिए हुए गयाजी पहुँच गये जिन्हें देख राजा वीरेन्द्रसिंह को अपना इरादा तोड देना पड़ा और बहुत दिनों से बिछुड़े हुए प्यारे लडके को आज इस अवस्था में पाकर अपने तनोबदन की सुध भुला देनी पड़ी। राजा वीरेन्द्रसिंह के मौजूद होने पर भी रायाजी का बड़ा भारी राजभवन सूना हो रहा था क्योंकि उसमें रहने वाली रानी माधवी श्रीर दीवान अग्निदत्त के रिश्तेदार लोग भाग गये थे और हुक्म के मुताबिक किम ने भी उनको भागते समय नहीं रोकी थी। इस समय राना बरेन्द्रसिंह उनके दोनों लटके और ऐयारके सिवाय सिर्फ योदे से फौजी अफगरों का देरा दम मइल में पड़ा हुआ है। ऐया में सिर्फ भेगसिंह र तारासिंह यहां मौजूद हैं बाकी के कुल ऐयर चुनार लौटा