पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१६२

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दूसरा हिस्सा
 

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५६. दूसरा दिन दिये गये थे । शहर के इन्तजाम में मई के पहिले यह किया गया था कि चीठी या अरजी लड़े के लिये एक बजे छेद करके दो बड़े बड़े सन्दूक जमवन के फाटक के दोनों तरफ लटका दिये गये शोर मुनादी करवा दी गई कि निमको पना सुग्ध दुःख भर्न करना हो दबार में हाजिर होकर गार्ज किया करे और जो किसी कारण से हाजिर न हो सके वद् अरजा लिग्न कर इन्ही सभ्द क मैं ,ल दियो परे । म था कि बारी बारी से ३ सन्दूक दिन रात में छः सर्तले कुँअर प्रानन्दसिंह के सामने सेले दाया करें ! इस इन्तजाम में गया की रियायः श्रुत नन्न थी । । रात पत्र भर से ज्यादे जा चुकी है। एक सजे हुए कमरे में जिनमें रोशनी अच्छी तरह हो रही है, छोटी सी लू सूरत ममहरो पर जग्म कुँअर इन्द्र तिमि सटे हुए इनका दु गाई गर्दन तक श्रोहे हैं। ऋ । कई दिनों पर इन्हें हौश श्रई है इम अचम्से में आकर एम नचे कम के चारों तरफ निगाह दीद कर अच्छी तरह देख रहे हैं। धन में ये हथि का ढासना पत्नी पर दिये हूए उनके पिता ने वीरेन्द्रसिंह बेटे इन। मैं दे रहे हैं, और कुछ पायताने की तरफ ट कर पाटा पकड़े श्रर शानन्दसिंह बैठे बड़े भाई की तरफ दे रहे हैं । प बताने की तरफ पच,दी के नीचे बैठे भैरोसिंह श्रीर तानिह धरे धीरे तनुश रुम रहे हैं । ॐ र ग्रानन्दसिंह के बयान में देवसिंह ये हैं। इनके लाय असंह श्र बहुत से मुक्ताह वगैरह चार तरफ ३३ हैं । परे के बाहर बहुत से मिपाही ने तलवार लिए पदरी दे रहे है। भो देर तक कमरे में सन्नाटा रहा, इसके बाद केशर इन्द्र तसिंह * *पने पिता की तरफ देउ र पूछा :-- | इन्द्र० २६ फोन भी जगह है ? यह मकान किस हैं ? वीरेन्द्र० । वृद्द चन्द्रः ६। दधानः गयाज ४ । ईश्वर की कृपा से में यह हमारे करने में आ गई है। यह मकान भी चन्द्रदर ६ के