पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१६६

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दूसरा हिस्सा
 

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। ६३ दूसरा हिस्सर में और कोई भी न रहा । इन लोगों ने रति भर आराम से काटी श्री सझेरी होने पर श्रॉख खुनते ही एक विचित्र तमाशा देखा । । सुबह के पहिले ही न ऐयारों की श्रॉव खुनी द्रौर हैरत भरी निगा रे चारो तरफ देखने लगे, इसके बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह प्रौर श्रानन्दामह भी जाणे श्रीर झनों की खुशद् जो इस कमरे में बहुत देर पहिले ही से भर रही थी लेने तथा दोनें ऐयारों की तरह ताज्जुब से चारो तरफ देखने लगे । अनिन्द० । वे खुशबूदार फून के गजरे और गुलदस्ते इस फयरे में किसने सजाये हैं । इन्द्र० । ताज्जुब हैं, हमारे ग्रामी दिनी हुक्म पाये ऐसी फर कर भै० हम दोनों 'प्रादमी घरटे भर पहले से उठ कर इस पर गौर कर रहे हैं मगर कुछ समझ में नहीं आता कि यह या मामला है । म्यानन्द । गुलदस्ते भी बहुत सूरत और बेशकीमती मालूम पष्ट । तारा० । ( एक गुलदस्ता उठा कर और पास ला मर) देखिये इस सोने के गुलदस्ते पर था उग्दा मीने का काम किया हुआ है । वैश* किसी बहुत बड़े शफीन को बनाया हुआ है, इमी दया के सब गुलदस्ते हैं। | भैरो० । ६एक बात ताज्जुब की ठीर भी है जो अभी आपसे नहीं हो ! ० | वह क्या है भैरो० } { २१ का इशारा करके ) वे दोनों देव सिर्फ घुमा फर मैने पुतं छोट दिये थे मगर नुग्रह , र दर्वाज की तरह इन्हें * इन्ट पाया ।। सारा ५१ प्रानन्दविह को शरफ देख फर) शायद रात को अरे उटै हो ।