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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति हुक्म पाते ही कुँअर निन्दसिंह उठ खड़े हुए, खु टी से लटकती हुई एक मुली उतार ली और उस दर्वाजे के पास जो एक एक हाथ दोनों कुल पुर मारा जिससे कुत्ता कट गए | तारासिंह ने दोनों पल्ले उतार श्रेज़ रख दिये, भैरोसिंह ने एक बलता हुआ शमादने उठा लिया, और तीनों आदमी उस कोटरी के अन्दर गए, मगर वहा एक चूहे का बच्चा भी नजर न आया ! इस कोठरी में तीन तरफ मजबूत दीवार थी और एक तरफ वही दवज्ञा था जिसका कुलाब काट ये लोग अन्दर आये थे, हा सामने की तरफ वाली अर्थात् बिचलो दीवार में कठि की एक अलमारी बडी हुई थी । इन लोगों का ध्यान उस अलमारी पर गया और सोचने लगे कि शायद यह अलमारी इस देश की हो जो दवजे का काम देती हो Jौर इसी राह से वह शौत आई हो, मगर उन लोगों का यह ख्याल भी तुरन्त ही जाता रहा और विश्वास हो गया कि यह आलमारी किसी तरह दर्वाजा नहीं हो सकती और न इस राह से वह औरत श्राई ही होगी, क्योंकि उस शालमारी में भैरोसिंह ने अपने हाथ से कुछ जरूरी असबाब रख कर ताला लगा दिया था जो अभी तक ज्यों का त्यो वन्द था । यह कव हो सकता है कि कोई ताला खोल कर इस अलमारी के अन्दर घुस गया है। श्रर बहिर का ताला फिर जैसा की तैसी दुरुस्त कर दिया हो ! लेकिन तब फिर क्या हुअा १ वह औरत क्र्योकर आई थी थौर किस राई से चली गई १ उन लोगों ने लाख सिर धुना सौर गौर किया मगर कुछ समझ में न आया । ताज्जुवे भरी बातें हो में रात बीत गई 1 सुबह को जब राजा वीरेन्द्र सिंह अपने लडके फो देखने के लिए उस कमरे में आये तो जरुह वैद्य श्रीर फई मुमामिये लोग भी उनके साथ थे ) वीरेन्द्रसिंह ने इन्द्रजीतसिंह ३ तचायत का हाल पूछा । उन्होंने कहा, “अत्र तवीयत अच्छी है मगर एक जरूर वारी अर्ज किया चाहता हूँ जिसके लिए तखलिया (एकान्त) से जाना बेहतर होगा ।”