पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१७२

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दूसरा हिस्सा
 

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दुसरा हिस्सा | बीरेन्द्रसिंह ने भैरोसिंह की तरफ देखा । उसने तखलिया हो जाने में महाराज की रजामन्दी जान कर सभ को इट जाने का इशारा किया । बात की याद में सन्नाटा हो गया' धौर सिर्फ वही पाच श्रादमी उस हमरे में रह गए। स्वीरेन्द्र० | कहो क्या बात है ।। इन्द्र० } रात एक अजीब चात देखने में श्राई । बीरेन्द्र० | वह क्या ? इन्द्र० ३ ( तारासिंह की तरफ देख कर } तारासिंह, तुग्दा सः हाल कह जाग्रो फ्योंकि उस समय तुम्ही जागते थे, इम लोग तो पीले लगाए गए हैं। सारा० { बहुत खूः । | तारासिंह ने रात का हान पूरा गूग राजा वीरेन्द्रमिद से कह सुनाया जिसे सुन कर उन्होंने बहुत ताज्जुब किया श्रौर प्रण्टों तक गौर में हुई। २हुने दाद बोले, वैर अब यह बात कि श्रीर को न मान्झूम हो नहीं सो मुद्दों और अट्लकारों में खलबली पैदा हो जायगी और सैकड़ों तरह फी र पें उड़ने लगेंगी । देर हो या होता है और कब तक पता नहीं लगता, आज एम भी इसी कमरे में सोयेंगे । एक दिन क्या कई दिनों तक राजा बीरेन्द्रसिंह इस कमरे में सोए मगर कुछ मादम न हुआ और न फिर कोई बात ही देखने में आई। खिर उन्होंने हुक्म दिया कि उस कोठड़ो का वा नया कुलाचा लगा कर फिर उसी तरह दुरुस्त कर दिया जाय ।। चारहवां बयान ाज पाँच दिन के बाद देवीमिंद लौट कर आये हैं। जिस कमरे झt हाल में ऊपर लिख झाये हैं उसी में राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके दोनों