पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१७६

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिं। भैरो० । धूम लोग तो उसे दुश्मन नहीं समझते है। देवी० | अमें हम न बोलेंगे जन तक यहा का खुलाग्र हाल न नुन लेंगे } न मालूम आप लोग या कई रहे हैं ! चार-द्र० । वैर यही माँ, अपने लड़के से पूछिये कि यह क्या हैं । तारा० । जी हैं दुनिये मैं अर्ज करता हूँ । तारासिह ने यहाँ का बिल्कुन दल अच्छी तरह कहा, सून ते फेक दिये गये थे मगर गुलदस्ते अभी तक मौजूद थे, वे मी दिपाये । देव सिंह हैरान थे कि यह क्या मागचा है ! देर तक सोचने के बाद वेने, धुझे तो विश्वास नहीं होता कि यह वही मृत झाई होगी जिसे मैंने वहा देगा ।” चा२-० २ शक भी मिटा ही टालना चाहिये । देवी० } उन लोगों का जमाव वद रोज ही होता है जहा से ३ देस श्रीया ६ । प्राज तारा चा भैरो को अपने साथ ले चलेगा, ये खुद ही देर हो कि दई। शौरत है या दूभरी । | वीरेन्द्र० । ठीक है, झाब ऐ ही करना । । श्न तुग श्रन इन्। श्रर म्याने फहौ । । देव० | मुझे यह भी मान्लू : शा कि उन दुष्टों ने पेशे के जिथे "अपना टैग उग पहाड़ी में काम किया है और बातचीत है यह भी ना गया कि लुट र चोरी का मान ५। ३ सोग ; दिने । ६ रन है । मैंने अभी बहुत तेज उन सभी को नहीं को, को कुछ गालम १ ६ श्राप फड़ने के लिये चला गया | इ उन लंग को रिफ़ार करना कुछ मुश्किल नह ह ह थोड़े दम अपने साथ में ऊँ : आज से उन लोगों को उग झीर के मंदिर गिरफर पर ला । चीरेन्द्र ० | छा तो तुः । यो त ? पिने साये में जा, फिर कश इन लोगों के दिन की कि की जायेगी } 'प्रारि मैरी को १ कर दामिह पर पाई पर