पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
७४
 

________________

चन्द्रकान्ता सन्तति ७४ गये जो गयाजी से तीन या चार कोस की दूरी पर होगा । धूमधुमौवी श्रीर पेचीली पडरिडर्यों को ते करते हुए पहर रात जाते जाते ये दोनों उस खोह के पास पहुँचे जिसमें वे बदमाश डाकू लोग रहते थे 1 उस खोह के पास हो एक श्रौर छोटी सी गुफा थी जिसमें मुश्किल से दो श्रादमी वैठ सकते थे । इस गुफा में एक बारीक दरार ऐसी पड़ी हुई थी जिससे ये दोनों ऐयार उस लम्बी चौड़ो गुफा का हाल बखूबी देख सकते थे जिसम वे डाक् लोग रहते थे और इस समय वे सब के सब वहाँ मौजूद भी थे, बल्कि वह श्रीरत भी सर्दारी के तौर पर छोटी सी गद्दी लगाए वहाँ | मौजूद थी । ये दोनों ऐयार उस दरार से उन लोगों की बातचीत तो नहीं सुन सकते थे मगर सूरत शक्ल भाव और इशारे अच्छी तरह देख सकते थे । इन लोगों ने इसे समय बहाँ पन्द्रह डाकुओं को वैठे हुए पाया और उस औरत को देख मैरोसिंह ने पहिचान लिया कि यह वही है जो कुँअर इन्द्रजीतसिह के कमरे में ग्राई थी, आज वह वैसी साडी या उन बेवरों को पहिरे हुए न थी तो भी सूरत शक्ल में किसी तरह का फर्क न था। । इन दोनों ऐयारों के पहुँचने बाद दो घण्टे तक वे डाकू लोग अापुस में कुछ बातचीत करते रहे, इस बीच में कई डाकुयों ने दो तीन दफे हाथ जोड़ कर उम श्रौत से कुछ कहा जिसके जवाब में उसने रि हिला दिया जिससे मालूम हुआ कि मंजूर नहीं किया । इतने ही में एक दूसरे ह्वान कमसिन श्रीर फुरतीली औरत लपकती हुई वहाँ श्री मौजूद हुई । उसके हॉफनै अौर दम फूलने से मालूम होता था कि वह बहुत दूर से होती हुई भा रही हैं। | इस नई श्राई हुई औरत ने न मालूम उस सर्दार श्रीरत के कान में झुक कर क्या कहा जिसके मुनते है। उसकी हालत बदल गई । घडी ६ई। उ सुई हो गई, मृत चेहरा तमतमा उठा, श्रीर गुरसे से चुदन ।लगा । उसने अपने सामन पर हुई त नवार उठा ली र तुरत