पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१७८

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दूसरा हिस्सा
 

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| ७६ । दूसरा हिस्सा | कोट्टी खोली गई । एक राय में रोशनी दूसरी में नी तलवार लेर पहिले देवीसिंह फौटडी के अन्दर घुमे और तुरत है। बोन उठे-- *वाह वाह, यह तो चुनावमा मच चुका है !! अव राजा बीरेन्द्रसिंह दोन कुमार और उनके दोनों पैयार भी कोठी के अन्दर गए और ताजुब भरी निगाहों से चारो तरफ देखने लगे । स फौटटी में जो पर्स बिछी हुश्रा था वह इस तरह से सिमट गया या जैसे कई प्रादमियों के वेअख्तियार उछल कूद चरने या लड़ने से इकट्ठा हो गया है, ऊपर से वह खून से तर भी हो रहा था ! चारो तरफ दीवार पर भी खून के छोटे र लेती समय हाथ महक वर बैठ जानें वात तलवारों के निशान दिखाई दे रे में। बीच में एक लाश पड़ी हुई थी मगर भेभिर के, कुछ समझ में नहीं शीता ॥ कि यह लाश किसकी हैं । कप में सिर्फ एक लंगोट उसकी कमरे में था। तमाम बदन नद्रा जिग्ने भन्ने से ज्यादा तैल मला हुआ था। दाहिने हाथ में तलवार धी गर वह हाथ भी कटा हुन्नी सिर्प जरा सा गा लगा हुया था वह भी इतना कर कि अगर कोई ऊँचे तो अलग हो जाये । स ] यादें परेशान र बेचैन करने वाली एक चीज ग्राँर हिवाई दी । । | टाहिने हाथ को को हुई एक कलाई जिसमें पन्नादी कटार भी तक जूद था, दिखाई पड़ी। यानन्दसिंह ने फौरन उसे हाथ को उठा लिया र स की निगहि गौर के साथ उस पर पढने ल ! यह कई किसी ना जुन् एमीन और धमसिन श्रीरत को थी | हाथ में दारे को ** फटी र जमीन पर मानिः की । तन बारीक कटाऊ चूड़ियाँ भी मीनू ६, शायद कलई पट दर गिरती रामय में वृदियाँ हाथ से "पल ६३ जोन पर गई हो । रित्र कलाई के देने से सभ को रंजे या और झट उन शरत की तरफ पान दौः गया जिसे इस घड़ी में से निकतते म ने ४५ था । चाहे उच्च भर के सदम से ३ रोग वैसे ही इन क्यों न हों मगर