पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१८०

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तीसरा हिस्सा
 

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तेसर हिस्सा कमना० । जहा तक हैं। काका तुमः, किशोरी की मदद जी नान रे , बैंक किशोरी जन्म भर गाद रक्पेग र तु अपनी बहिन भा दिई ! वर काई चिन्ता नही, दृम लाई मत न हारनी चाहिए र च ममय श्वर के न भूलना चाहिए। मुझे घड़ी घटी बेचारे नहि या या । तुम पर उनकी रा हैं मगर मुरारी उजु ल न जानने से न म उनके दिल में क्या क्या य त पैदा ईती 1.}, { यर ३ जानने , जिसको उनका दिल प्यार करता है वह • , त, बेशक मैं खुश हो । • १० ) ( ऊ ची सास ले का ) ॐ ईश्वर की मरजी !! {० } देर वह उस पुराने मान ही दीवार दिई देने लगी । २० } हा ईक, अब अा १६ । । दूत- रा में : नो एक ऐसे टूटे फुटे मकान के पास पहुँची जिसकी चीनी दीवारें ग्रोर व चड़े फाटक कहे देते थे कि किसी जमाने में हे इजठ पता है । चाहे इस समय यह माग्न कैसी ही खराब हालत ६ फ् न है, तो भी इसमें छोटी छोटी के ट, ॐ अलादे कई बड़े बड़े दोलन और 'कर भी तक मौजूद थे। | वे द न उग मकान के अन्दर चली गई । चि में चूने मिट्टी और । तर देर र दुःया था। घःल से घुम्ती हुई एक दालान में पर नं १ ३ दालान में एक तरफ एवं ट। यी जिसमे बह र कमली ५३ में व जलाई र नारो (फ देवरी लग | बगल में एक भाल२॥ दीवार हैं : ५३ हुई ६ वि पर चर्ग ने लिय दो मु नों इ7 ३ । कमलो में चत्तं विन! * ५ ५ ३ कर इन इथे। से दे में मुझूठ बों न च दुरै दुमायाव पल रूल या झौर भीतः | वः । । । ३३ प्राई | दे ि अन्दर चली गः र पहा । का पिर चन्द रिला । उन पत्रा में भतः की प, ५) उ:: तरह पोल: र २न्द्र र ३ लए दी ==ळे लगें , ३ ।।