पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१८२

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तीसरा हिस्सा
 

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वीमरा रिहा मिनीं० । वैशः कमला की तर् में भी अपक, रा म च । मानती हैं ।। शादमः ० | तुम किसी तरह का चिन्ता मत करो । ज क होरा में तुम्हारी मदद करू गा । ( कमला की तरफ देख कर तुझे चुछ होता - गढ़ को उर्वर भी मन्दूिम है? कमला | कल में बह गई थी मगर अच्छी तर हाल मान्म न कर सकी, ग्रपिसे या मिलने का वादा किया था इसलिए जल्द लौट । । शादमी० ! अभी पहर भर हु में खुद रोतास; से चन | अ रहा हूँ ।। कः । तो बेशक आपको बहुत कुछ ल ब कर मना होगा । यादमी० ! मुझसे ज्यादे व का trले के ई नही मोन कर ममता क्यः पनीर वर्ष तक ईमानदार शोर कुनामी के साथ वहा के राजा को नौकरी कर चुकी हैं। चाहे आज दिग्विजयसिह इमारे दुश्मन हो गए ।फर भी मैं कोई काम ऐसा न करूंगा जिससे उसे राज्य का नुकसान हो, हा तुम्हारे सवत्र से किशोरी को मदद जरूर करूगा ।। कमला० । दिग्विजयसिह नाक ही प्रापसे रज़ हो गये ! प्रादमी० { नही नहीं, उन्होंने अनर्थ नहीं दिया । जब ३ कि । फो नवर्दस्ती अपने यहा रा चारते हैं और जानते हैं दिः शेर सिंह ऐ६३ | भतीजी कमला किशोरी के यहा नर हैं श्रीर ऐयारी के पैन में तेज , च किशोरी के छुपाने के लिए दाद मात करेगी, तो उन्हें गुमसे परहेज करना बहुत मुनायि गा, चाहे में कैसा । वैश्याए श्रीर नेक यो न समझा जाऊ । उन्होंने मुझे कैद करने का इरादा बेजा नहीं किया ! ! क वह जमाना था कि रणधीरसिंह ( किशोरी का नाना ) ग्रं दो - जसिंर् में दोस्ती थी, में दिग्विजयुसिंह के पहा नैर थे। श्री भैरा छंटा भाई अर्थात् सुर चाप, र उसे बैकुण्ठ , रणधीरभि के ये इन था । शाज़ दे कितना उलट फेर हो गया है। मैं बैर हैं: