पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१९१

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सन्तति पइरा पा करता था, दूसरा दिवजी खुला हुआ था और मालूम होता था कि किसी टोलान या कमरे में जाने का रास्ता है, लाली ने जल्दी में केवल इतना ही कहा कि ताली लेने के लिये इसी राह से एक में फोन में मै गई थी, और तीसरी तरफ एक छोटा सा दवजा था जिसका ताली विवाह के पटले ही में जड़ा हुआ था । लाली ने वही ताली जो इस अजायबघरे में से ले गई थी लगा कर उस दवजे को खोला, दोनों उसके अन्दर बुस, लाली ने फिर उसई ताली से उस मजबूत दर्वाजे को अन्दर की तरफ से बन्द कर दिया। ताला इस देश से जड़ा हुआ था कि वही ताली बाहर और भीतर दोनों तरफ लग सकती थी । लाली ने यह काम बड़ी फुर्ती से किया, यहाँ तक कि उसके अन्दर चले जाने के बाद तब टूटी हुई छत की राह वे लोग जो लाली और किशोरी को पकड़ने के लिये आ रहे थे नीचे इस कोठरी में उतर सके । भीतर से ताला बन्द करके लाली ने कहा, “च हम लोग निश्चिन्त हुए, डर केवल इतना ही है कि किसी दुसरी राइ से कोई आकर हम लोगों को तग न करे, पर जहाँ तक मैं जानती हैं और जो कुछ मैंने सुना है उससे तो विश्वास है कि इस अजायबघर में आने के लिये और कोई राह नहीं हैं।" | लाली और किशोर अव एक ऐसे घर में पहुँचीं जिसकी छत बहुत ही नीची थी यहाँ तक कि हाथ उठाने से छुन छुने में माती यी । यह घर बिल्कुल अँधेरा था । लाली ने अपनी गठरी खोली और सामान निकाल कर मोमबत्ती जलाई। मालूम हुआ कि यह एक कोठरी है। जिसके चारो तरफ की दीवार पत्थर की बनी हुई तथा बहुत ही चिकनी म्झौर मजबूत हैं । लाली पोजने लगी कि इस मकान से किसी दूसरे मकान में जाने के लिये रस्ता या दरवाजा है या नहीं। इस मकान में कहा जहा लाली ने ताला खोला इसी ताली और इसी दग से पोला ।