पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१९२

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चौथा हिस्सा
 

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चौथा दिला नभन में एक दूजा उन या दिल्ली जिने लानी ने पोन्ना इग्नोर इन में मोन, लिये नीचे उतरी । लगभग बीस पचीन साटिङतर कर दो। | एक दुर्ग में पहुची जो बहुत दूर तञ्चली गई थी । ये दोना लगभग तीन सो म के गई होगी कि आवाज दोनों के कानों पहुची : ‘ाय, की दर मार लि, या दुःन देता है । यह आवाज नुन र किशोर कॉप गई र उसने फ फर लाली । पूछा, ' धन, नर बाज के है ? अावाज बारीक । श्रार लिम शौग्न की मालम होती है । लाली० । मुझे मान्स नई कि यह दाज कैसी है ऋर न इने गरे में सूट मॉजी ने मुझे कुछ का । । रिंशोरी० । मालूम पड़ता है कि दिल्मी प्रोग्त को कोई दुः३ रा, व् ऐरी न कि कम लोग को भी मनावे, हम दोनों का पानी है, एक छुरा तक पान में नहीं है। लाली० । में अपने साथ दो छुरै लाई है, एक अपने वास्ते द्रौद - तेरे पाते । ( फमर से एक छुरी निकाल कर श्री किशोरी के १ = टे फर) ले एक 5 रस, मुझे खूब याद है एक दो तूने क् ?* टों ने # बनियत मत पसन्द करती है, फिर :: में तमाम जान देने को तैयार हैं ।