पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१९४

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चौथा हिस्सा
 

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या स्तिो तथा ऐयारों की चाल और बातचीत के दग पर ध्यान दिया और यह भी माम किया कि राजा दिग्विजयसिंह फिर झिग को चाता है, ' विम विस की तिर करता है, और फिर फिम को अपना विश्वासपात्र समकता है। इस सात दिन के बीच में तेजसिंह से कई शर चोदार ग्रौर औरत बनने फी भी जरूरत पड़ी और अच्छे अच्छे घरों में इस पर वहां की कैफियत श्ररि हालत को भी देख सुन आये । एक इफे तेजसिंह उग शिवालय में भी नये जिसमें भेगेमिंटू और बद्रीनाथ ने रेत मी थी या जी ने युअर गर्मि पो पकड़ ले गये थे। तेजसिंह ने इस शिवालय के रहने वालों भर पुजेग्यि की अय हालत देवी । जव से मर झल्प्रागसिंह गिरफ्तार हाथ तत्र न उन लोगों के दिल में होगी दर समा गया था कि ये बात बात में चंन्ते र ने ये, रात च न पत्त के उपकने में भी किसी एवार के आने का गुमान रोया था, तो दाणे व इत ने उन्हें बणा हो ग , क्रीि संन्यास त्राणु साधु को देगा श्ररि चरन उदे कि एयर है, कि म दृ को भी अगद मदिर के श्राग उड़ा पाते तो चट इन एवार मनझ लेते र न त गर्दन नै थि द ति के बार न कर देस बन न ल । त्तिा में आज तेजसिंह भी माय म मुरत ने शिया में जा । पुजेन्दिो ने देते ही गुल गग्ना शुरू ाि कि 'र है गर है, धने पको, जाने न गये !' चा रिं वा इनाने अँार गाजु फग्ने लगे कि इन लोगों प म मान गा बि म गाः, पति ते मि को न ा गुमान भी ; किं वा के गने वाले तु दिल्ली थो भी ऐः सन . मग पापी व से भर निलरा * गुदी निन म रह से दिले :-- हो । जुन में जानने है कि इन यार ? । एक पुजे० । य एम ई इनित हैं, निधाय एका के पाई दूग गिर गन्ने त्रा मना है ! 'ग्री तुम लोग तो हमारे र