पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१९५

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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করালা বার साहब को पकड़ ले गये हौ या कोई दूसरा १ बस बस, यहाँ से चले जाओ, नहीं तो कान पकड़ के खा जायगे । ‘बुस वस, यहाँ से चले जा' इत्यादि सुनते ही तेजसिंह समझ गये कि ये लोग बेवकूफ हैं, अगर हमारे ऐयार होने का इन्हें विश्वास होता तो ये लोगचले जाग्रो कभी,न कहते बल्कि हमें गिरफ्तार करने का उद्योग करते, बस इन्हें भैरोसिंह और बद्रीनाथ डरा गये हैं और कुछ नहीं । तेजसिंह खड़े यह सोच ही रहे थे कि इतने में एक लँगडा भिखमग हाथ में ठीकड़ा लिये लाठी टेकता वहाँ श्री पहुँचा और पुजेरीजी की जयजयकार मनाने लगा । सूरत देखते ही एक पुजेरी चिल्ला उठा और बोला, “लो देखो, एक दूसरा ऐयार भी आ पहुँची, अबकी शैतान लँगड़ा बन कर आया है, जानता नहीं कि हमलोग बिना पहिचाने में रहेंगे, भाग नहीं तो सर तोड़ डालेंगी !” अव तेजसिंह को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग सिड़ी हो गये हैं, जिसे देखते हैं उसे ही ऐयार समझ लेते हैं। तेजसिंह वहाँ से लौटे शौर यह सोचते हुए खिड़की की राह है दीवार के पार हो जुगल में चले गये कि अव यहाँ के ऐयारों से मिलना चाहिये और देखना चाहिये कि वे कैसे हैं और ऐयारी के फन में कितने तेज है । | इस किले के अन्दर गाँजा पिलाने वालों की कई दूकानें थीं जिन्हें | 9 गेहतासगढ़ किले की बड़ी चहारदीवारी में चारो तरफ छोटी छोरी बहुत सी खिड़कियों थीं जिनमें लोहे के मजबूत दवाजें लगे रहते थे श्रीर दो सिपाही बराबर पग दिया करते थे । फकीर मोहताज और गरीत्र रिश्रया अक्सर उन विड़कियो (छोटे टर्वाज ) की राहू जगले में से सूखी लकड़ियाँ चुनने या जगली फल तोड़ने या जरूरी काम के लिये बाहर जाया करते थे, मगर चिराग जलते ही ये खिड़कियों बन्द कर दी जाती थीं ।