पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२०२

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चौथा हिस्सा
 

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चौथा द्वित्ता कि अाज महाराज ने देर क्यों लगाई, इससे उनका चेदर भी कुछ उदास सा हो । या । दाढ़ी तो वहीं धी जो तेजसिंह ने लगा दी थी । तेजसिंह ने दाढ़ी बनाते मानव जान वृझ र कुछ फर्क डाल दिया था नित पर मान्टि ने तो छ ध्यान न दिया मगर बी फ अब मरागज की ऑवों में लटक्ने लगई । जिस निगाह में कोई प्सिी बहुरुपिये को देखता है उनी निगा से बिना कुछ बोले चाले महाराज अपने टीयान माने में देने लर।। रामानन्द यह देने के और भी उदास हुआ कि इस समय मराज की निगाह में अन्तर क्यों पड़ गया है ।। तरदुद और ताप के सवव गानन्द के चेहरे का रंग जैसे जैसे बदलता गदा होने से उसके पेटार होने का कि मी मा के दिल में बैठता गया वई सात चीनने पर भी न तो मिानन्द, ही कुछ पूछ का और न महाराज ने उन देने में हुक्म दिया 1 तेजसिंह ने अपने लिये वह मौका बहुत अच्छा नमा, झः शहर निक्लने र राते हुए कि श तलाम बन्ने मानन्द से किया। ताजुत्र रदद भीर दर में रामानन्द के चैर का न उड़ गया और वह एक्टक तसिंह ही तरफ देखने लगा है। | ऐयारी भी दिन दम है । म पन में सत्र में भारी ला दट फा हैं । जो ऐसार तिन रोक रोग उतना ही जल्द होगा । तेजसिंह को देये, रिस जीवट या ऐयार है कि दुश्मन के घर में हुस कर भी जर नीं टरा और दिन दोपहर रात्रे ने झूठा का रहा है ! ऐसे समय अगर जग भी उसके चेहरे पर खक वा तरबुदुद की निशानी आ जाय तो तान न कि वे खुद ग जान ।। | राजसिंह ने मानन्द को बात करने की भी मोहलत न दी, न म उसकी तरफ देगा और कहा, “क्यों है ! दश महाराज दिग्विजयसिंह के दर फो ने ऐसा वैसा नमझ रखा है ? क्या है यहां भी ऐसारी से