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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति काम निकालना चाहता है । यहां ते कारीगरी न लगेगी, देख तेरी गदहे की मी मुटाई मैं पचकाता हूँ ।” | तेजसिंह ने फुर्ती से रामानन्द की दाढ़ी पर हाथ डाल दिया और महाराज को दिखा कर एक झटका दिया। झटका तो जोर से दिया मगर इस दुरा से कि महाराज को बहुत हलको झटका मालूम हो । रामानन्द की नकली दाढी अलग हो गई। इस तमाशे ने रामानन्द को पागल सा बना दिया | उसके दिल में तरह तरह की बातें पैदा होने लगी । यह समझ कर कि यह तैयार मुझ सच्चे को झूठा किया चाहता है उसे क्रोध चढ़ आया और वह खजर निकाल कर तेजसिंह पर झपटी, पर तेजसिंह वर बच गया । महाराज को रामानन्द पर और भी शक बैठ गया । उन्होंने उठ कर मानद की कृलाई जिसमें खजर लिये थी मजबूती से पकड़ ली और एक घूसा उसके मुँह पर दिया | ताकतवर महाराज के हाथ की घूस खाते ही मानदै का सर घूम गया और वह जमीन पर बैठ गया | तेजसिंह ने जेत्र से बेहोशी की दवा निकाली और जबर्दस्ती रामानन्द को सुघा दी । | महा० । क्या इसे बेहोश क्यों कर दिया ? तेज० । महाराज, गुस्से में आया हुया श्रोर अपने को फैसा जान यह ऐयार न मालूम कैसी कैसी बेहूदा बातें बकता, इसीलिये इसे बेहोश कर दिया । कैदखाने में ले जाने वाद फिर देखा जायगा ।। म० } सैर यह भी अच्छा ही किया, अब मुझसे ताली लो और तपाने में ले जाकर इसे दारोगा के सुपुर्द करो ।। महाराज की बात सुन तेजसिंह घडाये और सोचने लगे कि अध चुरी हुई । मराज से तहपाने की ताली ले कर कहा जाऊ ? मैं क्या दान तहखाना कहाँ है और दारोगा कौन है ? बड़ी मुश्किल हुई ! अगर जरा भी नाझर नूकर करता हूँ तो उल्टी आर्ते गले पड़ती है। आमिर कुछ सोच विचार पर तेजसिंह ने कहा :--