पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२०४

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चौथा हिस्सा
 

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ने ३० । महाराज * साथ च न ठीक ३ ।। म१० । । ? | है | दारोगा स य ऐ पो र मुझे दे कर बायरी छीर उन्! न जाने क्या यः शक पैदा हो ! १३ पा- अगर । । । जायेगा तो ::रूर कुछ यस चना, श्राप रे ते दाग का {सं तर की * * ११ । ० ।। होस ) अच्छा चले इस भी चलते हैं । तेज० { ४ मा , फिर मुझे पीठ प२ व ३ लाश लादे ताला खोलने और बन्द करने में भी मुश्किल है । | महाराज ने अपने कलमदनि ३ से नाली निकाली ग्रौ दिगगौर से एक लालटेन मॅगदा र हाथ में है । तेभिट्ट ने रामानन्द की गठरी या पीठ पर दी । तेजसिंह को साथ लिये हुए म रिराज अपने सोने वाले कमरे में गये प्री- दीवार में बढ़ी हुई एक अलगद का ताला पोला । तेजसिद ने देग्या * दीवार पोळी ३१ और उम बगद्द ने नीचे उतरने का प ता है । रामानन्द की गठरा लिचे हुए भाग १ पीछे पीछे तेजसिई चे उतरे, एक दालान भे पचने के बाद टी । गोद में लार यांना पोली र रा । चारद में चे । तेजति नै देउ कि बारहद के बचीच में छोटी सी ग लगाये एक यूटा प्रदिनी बैंड बुद्ध निरा रा हैमहाराजो देते ही उठना हुY पर ET ; ऊर सामने प्रा । | मा० । दारोगा , देविचे ग्रज मानन्द ने दुश्मन में एक ऎार । फाा है, में पनी हिफाजत में रचे ।। ते० । ( पीठ में गठरी उतार र उसे जेल र ) लीये में सम्हालिये, १३ प्राप निये । दाग १ ( ताने से ) वया २६ दान साहब को सूरत कर च ।। १