पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२०५

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति तेज० । जी हाँ, इसने मुझी को फजूल समझा ! महा० 1 ( हँस कर ) खैर चलो, अब दारोगा साहब इसका बन्दोवस्त कर लेंगे । तेज० } महाराज यदि आज्ञा हों तो मैं ठहर जाऊ और इस नालायक से होश में ली कर अपने मतलने की बात का कुछ पता लगाऊ । सरकार को भी अटकने के लिये मैं कहता परन्तु दर का समय विल्कुल निकल जाने और दर न करने से रिया के दिल में तरह तरह के शक दी हुँगे और आज कल ऐसा न होना चाहिये ।। | महा० ! तुम ठीक कहते हो, अच्छा मै जाती हैं, अपनी ताली साथ लिये जाता हूँ और ताला बन्द करता जाता हूँ, तुम दूसरी रह से दारोगा के साथ आना । ( दारोगा की तरफ देख कर } आप भी अाइयेगा और अपना रोजनामचा लेते आइयेगा । । | तेजसिंह को भी जगह छोड़ महाराज चले गये । रामानन्द रूपी तेजसिंह को लिये दारोगा साहब अपनी गद्दी पर आए और अपनी जगह तेजसिंह को बैठा कर आप नीचे बैठे । तेजसिंह ने आधे घण्टे तक दारोगा को अपनी बातों में खूब ही उलझाया, इसके बाद यह कहते हुए उटै कि 'अच्छा अब इस ऐयार को होश में लाकर मालूम करना चाहिये कि यह कौन है, अौर उस ऐयुरि के पास आये । अपने जेब में हाथ डाल लखलखे की डिबिया खोलने लगे, अाखिर बोले, “ोफ ओह, लखलखे की डिग्रिया तो दीवानखाने ही मैं भूल आये, अब क्या किया जाय ? दागे । मेरे पास लखलसे की डिबिया है, हुक्म हो तो लाऊ १ | तेज० । लाइये मगर अापके लखलखे से थह होश में न आयेगा क्योंकि जो बेहोशी की दवा इसे दी गई है वह मैने नए ढंग से बनाई है। और उसके लिए लखलखे का नुसता भी दूसरा है, खैर लाइये तो सही शायद काम चल जाय । “बहुत अच्छा फट् कर दारोगा साहव लखलख लेने चले गये,