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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ती सन्तति मिलने के लिए फिर पीछे की तरफ लौटना पड़ा। तहखाने के हर एक दवजे में पहिले ताला लगा रहता था मगर जब तेजसिंह ने इसे अपने कब्जे में कर लिया ( जिसको हाल आगे चल कर मालूम होगा ) तंत्र से ताला लगाना बन्द हो गया, केवल खटर्को ही पर कार्रवाई रह गई। | लैजसिंह ने चारो तरफ निगाह दौड़ कर देखा और मालूम किया कि इस जङ्गल में जासूसी करते हुए कई दफे आ चुके हैं और इस कब्रिस्तान में भी पहुँच चुके हैं मगर जानते नहीं थे कि यह कब्रिस्तान क्या है और किस मतलब से बनी हुई है। अब तेजसिंह ने सोच लिया कि हमारा काम चल गया, दारोगा साहब को इसी जगह फंसाना चाहिये जाने न पायें । तेज० । दारोगा साहब, हकीकत में तुम बड़े ही जूतीखोर हौ ! दारोगा • । (ताज्जुन से तेजसिंह का मुंह देख के ) मैंने क्या कसूर किया है जो श्राप गाली दे रहे हैं ? ऐसा तो कमी नहीं हुआ था !! तेज | फिर मेरे सामने गुरता है । कान पकड़ के उखाड़ लें !! दारोगा० । आज तक महाराज ने भी कमी में ऐसी बेइजती नहीं की थी !! तेजसिंह ने दागा को एक लात ऐसी लगाई कि वह बेचा धम्म से जमीन पर गिर पड़ा। तेजसिंह उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बेहोशी की दवा जबर्दस्ती नाक में कैंस दी। बेचारा दारोगा बेहोश हो गया | तेजसिंह ने दारोगा की कमर से और अपनी कमर से भी चादर झोली और उसी में दारोगा की गठरी बाँध ताली का गुच्छा और रोजनामचे की किताब भी उसी में रख पीठ पर लाद तेजी के साथ अपने ) लश्कर की तरफ रवाना हुए तथा दोपहर दिन चढ़ते चढ़ते राजा चीरेन्द्रसिंह के खेमें में जा पहुँचे । पहिले तो रामानन्द की सूरत देख दौरेन्द्रसिंह बँकिं मगर जब वन्धे हुए इशारे से तेजसिंह ने अपने फों दाहिर किया तो वे बहुत ही खुश हुए।