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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति तेज० | इसे फिर अपने साथ ले जऊ गया और मौका मिलने पर शुरू से आखिर तक पढ़ जाऊँगा, यही तो एक चीज हाथ लगी है। वीरेन्द्र० । बेशक उम्दा चीज है, (किताब तेजसिंह के हाय से लेकर) रोहतासगढ तहखाने को कुल हाल इससे तुम्हें मालूम हो जायगा, बल्कि इसके अलावे वहाँ को और भी बहुत कुछ भेद मालूम होगा । | तेज० । जी हाँ, इसमें दारोगा ने रोज रोज का हाल लिखा है, मैं समझता हूँ वहाँ ऐसी ऐसी और भी कई किताबें होंगी जो इसके पहिले के और दारोगों के हाय से लिखी गई होंगी। वीरेन्द्र० 1 जरूर होंगी, और इससे उस तहखाने के खजाने का भी पता लगता है। । तेज 1 लीजिए अब वह खजाना भी हम लोगों का हुआ चाहता हैं। अब हमें यहाँ देर न करके बहुत जल्द वहाँ पहुचना चाहिये, क्योकि दिग्विजयसिंह मुझे और दारोगा को अपने पास बुला गया था, देर हो जाने पर वह फिर तहखाने में आयेगा और किसी को न देखेगा तो सब काम ही चौपट हो जायमा ।। वीरेन्द्र । ठीक है, अब तुम जायो, देर मत करे । कुछ जलपान करने बाद ज्योतिपीजी भैरोसिंह और तारासिंह को साय लिये हुए तेजसिंह वहां से रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए और दो घण्टे दिन रहते ही तहखाने में जा पहुँचे । अभी तक तेजसिंह रामानन्द की सूरत में थे। तहखाने का रास्ता दिखाने बाद भैरोसिंह और तारासिंह वो तो वापस किया और ज्योतिपीजी को अपने पास रक्खा | अबकी द तखाने से बाहर निकलने वाले देने में तेजसिंह ने ताला नहीं लगायी, उन्हें केवल खटकों पर बन्द हुने दिया । दारोगा वाले रोजनामचे के पढ़ने से तेजसिंह के बहुत सी बातें मालूम हुई जिसे यहाँ लिउने की कोई जरूरत नहीं, समय समय पर श्राप । मास हो जायगा, द्दा उनमें से एक वति यहा लिख देना जरूरी है।