पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२१२

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चौथा हिस्सा
 

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चौया हिस्सा | महा० । शामरा, ऐसा ही मुनासिव है, ग्वैर जाओ जो होगा देखा जायगा। तेजसिंहू घर की तरफ लौटे । रामानन्द के घर की तरफ न झल्कि - अपने लश्कर की तरफः । उन्होंने इस बारने अपनी जान दाई घोर चलते हुए। मरे ऑन दयार में रामानन्द न श्रा, महाराज को विश्वास हो गया कि धीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने उन्हें फँसा लिया । चोथा बयान अपनी कार्यवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब अगली रामानन्द प्ो तापाने से क्ष्मिी नूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिसमे महाराज को किसी तरह का शक न हो और वह गुमान भी न हो कि तहखाने मैं ये रेन्द्रसिंह के यार लोग घुरो हैं दो तहराने का लि रिसी दूसरे को मालूम हो गया है, और यह काम तभी हो सकता है जा कोई ताजा भु कहीं से ये लगे । रोहतासग से चन कर तेजसिंह अपने लश्कर में पहुँच र सञ्च आल वीरेन्द्रसिंह से फहने बाद कई जालों को इस काम के लिए रवाना यिा कि अगर फहीं कोई ताजा मुर्दा जो भड़ न गया हो या फूल न गया हो मिले तो उठा लावें और लश्कर के पास ही कट्टी र कर इम इचिला ! इनफान्क में लेकर ॐ दो तीन दोस की दूरी पर नदी के रिलारे एक लावारिस भिरमा उसी दिन मरा था जिसे नुन लौरा शाम होते ते उठा लाये और लश्कर से कुछ दूर ज तेजसिंह ने ग्लयर की। भैलि प्ले राय लेकर तेजसिंह उस भुर्दे के पाग गए, और अपनी कार्रवाई करने लगे ।। तेजमिह ने उस मुद्दे पो ठीक रामानन्द श्री सूरत बनाया और मैंने | सिंह की मदद से उठा र तासगइ ताने के अन्दर ले गये और ३ मुद अक्सर ऐंठ जाया करता है इस लिद गठरी में ईंध नहीं रना, लाचार दो आदमी मित फर उठा ले गये ।।