पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा दिल्ली बद्री० } जरूर देखा होगा, खैर इसे तत्वाने में ले चलो फिर देखा जायगा । इसको खाने से रयाली राथ निकलना मुझे ताब में डालता है। ज्यो० । मह खाली हाय नहीं बल्कि राथ साफ करके भाई है । इसके पीछे अती ममय एक लाश मेरे पैर में अड़ी थी मगर पीछा करने की सुन में में कुछ जाँच न कर सका है। पण्डित बद्रीनाथ र अति उस औरत को गिरफ्तार किए । तहखाने में श्राने झोर उन दालान या चारदी मैजिसमें दागा साई की गद्दी लगी रती थी पहुँचे । उस ग्रोग्त यो में मैं, साथ बाँध दिया और हाथ में लालटेन ले उस लाश को देखने गये जो ज्योति के पैर में दी थी । बद्रीनाथ ने देखते ही उस लारा को पहिचान लिया और गेले, यह ते माधची है !! ज्योति ।। यह हाँ कर आई । ( माधव झी नाम पर हाथ रख २) मी दम है, मरी नरें । यह दुखिर इसके पेट में जन्म लग्र हैं। ल्न भारी नहीं है, बच सकते हैं। बद्री । ( नब्ज देर कर ) अच सकती है, और इसके उन पर | ध फर इसी तरह छोड़ दो, फिर बुझा जायगा । थोड़ा । भी इसके मै; में डाल देना चाहिये ।। बद्रीनाथ ने माधवी के जग्थ्य पर पट्टी बाँधी और भइ मा अर्क के मुँह में डाल कर उसे ६ । उन दृसी पोल में ले गये । इस गने में कई जगह से शेशन श्रीर वा पहुंचा करती थी, फाग ३ लिने अच्छी तर पी थी, घटनाय श्रीः निजी माधवी हर एक ऐरी फवा में ले गये जहाँ वादक को इट वा ठराढी हुवा श्री री धंर र उन उन जगह द प्राप्त गरी म हाँ डर गौर को दिन मरभवी को घायल पिया था उन्म के आँध 7 ! मनाप नै परे । ज्योतिषी से छt, ‘ाज दुवार थिए र उनके भो ही देर बाद में भी बीस पचीस श्रादमिद