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चन्द्रकान्ता सन्तति
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| चन्द्रकान्ता सन्तति फो साथ लेकर यहाँ श्राऊँगा ! अब मैं जाता हूँ, वहाँ बहुत कुछ फार्म | है, केवल इतना ही कहने के लिये आया था। मेरे जाने बाद तुम इस | शौरत से पूछताछ लेना कि यह कौन है, मगर एक बात का खौफ है। | ज्योति० | वह क्या है | बद्री० [ यह औरत इम लोगों को पहिचान गई है, कहीं ऐसा न हो कि तुम महाराज को बुलाओ और चे श्रा जावें तो यह कह उठे कि दारोगी साहब तो बीरेन्द्रसिंह के ऐयार हैं। | ज्योतिषी • 1 जरूर ऐसा होगा, इसका भी बन्दोबस्त कर लेना चाहिये। बद्री । खैर कोई हर्ज नहीं, मेरे पास मसाला वैयार है । ( बटुए में से एक डिबिया निकाल कर और ज्योतिषी के हाथ में देकर ) इसे आप रक्खें, अब मौका हो इसमें से थोड़ी सी दवा इसकी जुबान पर जत्रदस्ती मल दीजियेगी, वति की दात में जुत्रान ऐंठ जायगी, फिर यह साफ तौर पर कुछ भी न कह सकेगी, तव जी आपके जी मैं श्रावे महानि को सभ६ दें। | बद्रीनाथ वहाँ से चले गये। उनके जाने वाद उस औरत को डरा घमका और कुछ मार पीट कर तिघीजी ने उसका हाल मालूम करना चाहा मगर कुछ न हो सका, पहरों की मेहनत वद गई, अाखिर उस औरत ने तिघी से छहा, “ज्योतिपी, मैं आपको अच्छी तरह से जानती हैं । श्राप यह न समझिये कि माधवी को मैंने माग्य है, उसको घायल करने वाला पोई दूसरा ही था, सैर इन सब बातों से ोई मतलब नहीं क्योंकि अब तो माधवी भी आपके कब्जे में नहीं रही।” | ज्योतिषी ० । माधवी अब मेरे ३ से कहाँ जा सकती है ? | श्रौत• । जहाँ जा सकती थी वहाँ गई, श्राप जहाँ रख आये थे जा फर देखिये तो हैं या नहीं। श्रीग्त की बात सुन कर ज्योतिषीजी वहुत घबड़ाये शोर उठ कर दी गये जहाँ माधवी को छोड़ आये थे। उस औरत की बात सच