पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२१८

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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिरा निक्ल, माधवी हो वहाँ पता भी न था ! हाय में लालटेन ले के अन् ज्योतिज इधर उधर खोजते हैं मगर कुछ फाटा न हुग्री, अारि लोट फर फिर उस शौरत के पास श्राचे शीर शेले, तरी बात ठीक निक्ली, मगर अब मैं तेरी जान लिये बिना नहीं करता, हाँ अगर सच सच अपना जल' बता दे तो छोड़ दू ।' यतिथी ने हजार सिर पटका मगर उस औरत ने कुछ भी न छ । इमी गौरत के चिल्लाने या बोलने की आवाज किशोरी और लाली ने इस तरखाने में प्राकर नुन था जिसका हाल इस हिस्से के पट्टिले बयान में लिख आये है, क्योंकि इवी राम्र लाली और किशोरी भी वहाँ आ पहँ थीं । ज्योतिषीजी ने क्रीि में परिवाना, किशोरी के साथ लाल दा नाम लेकर 5 पुकार, अगर अभी यह नहीं मालुम हुआ कि लाली यो निशडी क्याफर र फुत्र से जानते थे, दि7 इरि तुली को इस बात का ताज्जुन था कि टाग ने इन्हें कर पहिचान लिया योकि ज्योतिज दारोगा के भेष में थे। ति ने किशोरी श्री लाल ने अपने पास बुला कर कुछ त ना चरा मगर मौहर न मिला । उमी तगर घन्टे ६ बजने हैं। आचार्ज प्राः । पिजी सम्झ गये हि महज 'प्रा हे । मगर इस समय मचि में आते हैं ! विद इस चह में कि लाली र किशोरी इस तहपाने में इन भाई हैं और इस काल माराज हो मान्स ) ( हैं। ब्ल्दी में मारे गोरि सिर्फ दो याद कर सकें. एक तो शिौरी और लाज़ी मी पदे कर बोले, पोस, अगर झाधी घड़ी को भी भौलत मिली तो तु यहां से निकात ले जाती, 5 यद्द नारेबा नुपरे ? लिए हो रहा है।' धूम उस दौरत फ उन पर माला गा सके दिमें मद महाराज भनिने कुछ न के 1 इतने में