पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
३०
 

________________

चन्द्रकान्तां सन्तति मशार्लचिंर्यो और कई जल्लाद को लेकर मरिराज आ पहुंचे और यतिषी की तरफ देख कर चोले, “इस तहखाने में किशोरी और लाली आई है, तुमने देखा है ?” , दारोगाः । ( खड़े होकर ) जी अभी तक तो यहाँ नहीं पहुंचीं । राजा० । खोजो कहा है, हाँ यह औरत कौन है ? 'दारोगा० । मालूम नहीं कौन है और क्यों आई है । मैंने इसी तहखाने में इसे गिरफ्तार किया हैं, पूछने से कुछ नहीं बताती । | राजा० । खैर किशोरी और लाल के साथ इसे भी भूतनाथ पर चढ़ देना (अलि देना चाहिये, क्योकि यहाँ की वधा कायदा है कि लिखे | श्रादमियो के सिवाय दुसरा जो इस तहखाने को देख ले उसे तुरंत बढ़ि दे देना चाहिये ।। सय कोइ किशोरी और लाली को खोजने लगे । इस समय ज्योतिषीजी घबड़ाये और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि कुवर नन्दसिंह और | हुमारे ऐयार लोग जल्द यहा अचि जिसमें किशोरी की जान बचें। | किशोर शोर लाली कही दूर न था, तुरत गिरफ्तार कर ली गई और उनकी मुश्के बंध गई। इसके बाद उस औरत से महाराज ने कुछ पूछा जिसकी जुबान पर ध्यौतिषीजी ने दवा मल दी थी, पर उसने महारनि । वात को कुछ भी जवाब न दिया । आखिर खम्भे से खोल कर उसकी भी मुश्कें बाघ ली गई और तीन औरत एक दर्ज की शह दूसरी संगीन बारइदरी मै पहुँचाई गई जिसमे सिंहासन के ऊपर त्यहि परयर की वह् भयानक मूरत वैठी हुई थी जिसको हाल इस सन्तति के तीसरे हिस्से के अखि बयान में हम लिख श्रायें हैं। इसी । समय आनन्दसिंह मैरोसिंहू और तारसिंह चहाँ पहुँचे और उन्होंने अपनी श्राप से उस औरत के मारे जाने का दृश्य देखा जिसकी जुबान पर दवा लगा दी गई थी । जय किशोरी के मारने की बारी आई सब कुअर श्रानन्दसिंह और दोनों ऐयारों से न रह गया श्रोर इन्होंने