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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति वृन्द था बड़े गौर से देख रही थी, नानक को देख कर उसने इशारे से पूछा, “क्या है ? | इसके जवाब में मानक ने लकड़ी की पटिया पर खड़िये से लिख कर दिखाया कि पार की तरफ बहुत से आदमी दिखाई पड़ते हैं, कौन ठिकाना शायद हमारे दुश्मन हों । | - औरत० ( लिख कर ) बजड़े को वहाव की तरफ जाने दो । सिपाहिंय, को हो अन्दुक लेकर तैयार रहें, अगर कोई जल में तैर कर यहाँ आता हुआ दिखाई पड़े तो बेशक गोली मार दें । नानक । बहुत अच्छा है। नानक फिर बाहर आया और सिपाहियों को हुक्म सुना कर भीतर चला गया। उस दौरस ने अपने आँचल से एक ताली खोल कर नानक के हाथ में दी और इशारे से कहा कि इस टीन के इन्वे को हमारे सन्दु में रख दो } | नानक ने वैसा ही किया, दुसरो कोठड़ी मैं जिसमें प्लग बिछा हुआ था और कुछ असनाव और सन्दुक रखा हुआ था गया और उसी ताल से एक सन्दुक खोल कर वह टीन का डन्या रख दिया और उसी तर तीला बन्द कर ताली उस औरत के इवाले की । उसी समय बाहर के बन्दूक की आवाज थ्राई । नानक ने तुरंत बाहर आकर पूछा, “क्या है ? सिपाही० । देखिये घई आदमी तैर फर इधर आ रहे हैं। दूसरा० । मगर बन्दूक की आवाज पा कर श्रम लौट चले । नानक फिर अन्दर गया और बाहर को हाल पटिये पर लिख कर प्रौन को समझाया । वह भी उठ खड़ी हुई और बाहर आकर पार के तरफ देखने लगी है घण्टा भर यों ही गुजर गया और भय वे शादमी जे परि दिरपाई दे रहे थे या तैर कर इस जड़े की तरफ आ रहे थे कहीं च गये, दिखाई नहीं देते । नान रुप्रसाद को साथ आने का इशारा करके वह