पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२२२

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चौथा हिस्सा
 

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पीपा हिस्सा औरत फिर म के अन्दर चली गई और पीछे पीछे नानक भी गया। इस गठी में और जो जो चीजें थीं वह गैंग अरित देखने लगी । तीन चार बेशकीमत मदने कपड़ों के सिवाय और उस गड़ी में कुछ भी न था। गठदी बाँध फर एक किनारे रख दी गई और पटियै पर लिख लिस कर दोनों में बातचीत होने लगी । औरत० । कलमदान में जो चीठियाँ हैं वे तुमने कहा से पाई । नानक | उसी कलमदान में थी । औरत { और वह फलमदान हों पर था ? ननिक० { उसकी चारपाई के नीचे पड़ा हुआ था, घर में सन्नाटा पा, मोई दिखाई न पड़ा, जो कुछ जल्दी में पाया ले आया । ग्रौरत० । खैर कोई हर्ज नहीं, हमें केवल उस टीन के ईन्चे से मतलब था, यह कलमदान मिल गया तो इन चीठ पुजा से भी बहुत काम चलेगा । इसके अलावे और कई बातें हुई जिसके लिखने की यह कोई जरूरत नहीं । पर ति से ज्यादे जा चुकी थी जब वह अति वहाँ से उठी और अमादान जो जल रहा ॥ बुझा अपनी बराई पर जा कर लेट ही । नानक भी एक किनारे फर्श पर सो रहा और रात भर नाव बेखटके चली गई, कोई बात ऐमी नहीं हुई जो लिखने योग्य हो । जय थोड़ी रात बाकी र भ६ औरत अपनी चारपाई से उठीं प्रौर लिड़को से यादर् इशॉक कर देखने लगी । इस समय आसमान बिलकुल साफ था, चन्द्रमा के साथ ही साथ तारे भी समयानुसार पनी चमक दिखा रहे थे और दो तीन खिड़कियों की राह इस बड़े के अन्दर भी चादनी गा रही थीं, बल्कि जिस चारपाई पर वह औरत सोई हुई थी चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह पड़ रही थी। वह औरत घरे से चारपाई के नीचे उतरी श्यौर र सन्दूक को पोल्य जिसमें नानक का लाया हुआ टीन की इच्मा रखवा दिया था। टीन का इन्चा इसमें से निकाल कर चारपाई पर रा और सन्दुक बन्द करने के बाद दूसरा सन्दुक स्वोल