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चन्द्रकान्ता सन्तति
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इन्द्रकान्तो सन्तति कर उसमें से एक मोमबत्ती निकाली और चारपाई पर आकर बैठ रही । मोमबत्ती में मे मोम लेकर उसने टीन के इब्वे को दरारों को अच्छी तरह वन्द किया और हर एक जोड़ में मोम लगाया जिसमें इवा तक भी उसके अन्दर न जा सके । इस काम के बाद वह खिड़की के बाहर गर्दन निकाल कर बैठी और किनारे की तरफ देखने लगी | दो मोझरे धीरे धीरे हाँइ ले रहे थे, जब वे थक जाते तो दूसरे दो को उठा कर उस काम पर लगा देते श्रीर अपि आराम करते ।। सवेरा होते होते वह नावे एक ऐसी जगह पहुँची जद्दों किनारे पर कुछ यादी थी, बल्कि गङ्गा के किनारे ही पर एक ऊँचा शिवाल मी था और उतर कर गङ्गाकी में स्नान करने के लिए सीहिया भी बनी। हुई थी । औरत ने उस मुकाम को अच्छी तरह देखा और जब वह अजड़ा उस शिवालय के ठीक सामने पहुना तब उसने वह टीने की इन्बा सिमें कोई अद्भुत वस्तु थी और जिसके सूखों को उसने अच्छी सरह मोम से बन्द कर दिया था जले में फेक दिया और फिर अपनी च,रपाई पर लेट रही । यह हाल किसी दूसरे को मालूम न हुआ । थोड़ी ही देर में वह अवादी पीछे रह गई और वजह दूर निकल गया। जब अच्छी तरह सवेरा हुआ और सूर्य की लालिमा निकल आई तो उम श्रीरत के हुक्म के मुताबिक बजट्टा एक जंगल के किन रे पहुँचा। उस औरत ने किनारे किनारे चलने का हुक्म दिया । यह किनारा इसी पार का ५ जिस तरफ फाशी पड़ती है या जिस हिस्से से उजडा खोले और सफर किया गया था। नारे किनारे जाने लगा और वह औरत किनारे के दरख्तों झो बड़े गौर से देने लगो । जगल गुसान और रमणीक था सुचई के मुहावने समय में तरह तरह के पक्षी बोल रहे थे, हवा के झपेटी के साथ काइली फूलों की मीठी खुशबू आ रही थी । वह श्रेरित एक खिडकी में सिर रखे जंगल की शोभा दे रही थी । यका