पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२२४

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चौथा हिस्सा
 

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३७ चौथा हिस्सा यह उसकी निगाह किसी चीज पर पड़ी जिसे देखते ही वह बँकी और चादर श्राकर यजड़ा रोकने और किनारे पर लगाने का इशारा करने लगी । | वजडा किनारे लगाया गया और वह गूंगी औरत अपने सिपाहियों को कुछ इशारा करके नानक यो साथ लेकर नीचे उतरी ।। घन्टे भर तक वह जङ्गलों में घूमती रही, इस बीच में उसने अपने जरूरी काम और नहाने धोने में छुट्टी पा ली और तत्र व ट्रे में प्राकर कुछ भोजन फ्रने बाद उसने अपनी मर्दानी सूरत बनाई । चुस्त पायजामा, घुग्ने के ऊपर तक म्फा चाकन, कमरबन्द, सर में बड़ा सा मुड़ास चांपा और ढाल तलवार खञ्जर के अलावे एक छोटी सी पिस्तौल | निममें गोली भरी हुई थी कमर में छिप और थोड़ी सी गली बारूद भी पास रेग्य चेन से उरने के लिये तैयार हुई । नान के ने उम ही ऐमी अवस्था देवी तो सामने अड़ कर खड़ा हो गया और इशारे से पूछा कि ये हम क्या करे ? इसके जवाब में उस औरत ने पटिया और उड़िया मागी और लिख लिख कर दोनों में बातचीत होने लगी । | श्रीरत० । तुम इसी बजड़े पर अपने ठिकाने चले जाओ, मैं तुमसे श्री मिगी ।। | नानक० | मैं किसी तरह तुम्हें अकेला नहीं हो सकता, तुम खूब ज्ञानती है कि तुम्हारे लिए मैने तिनो तकलीफे उठाई हैं और नीच से नीच काम करने को तैयार रहा हैं। | औरत | तुम्हारा इन इक्रि है मगर मुझ गैंग के साय तुम्हारी जिन्दगी रखुशी से नहीं चीत सकती, हाँ तुम्हारी मुहब्बत के बदले मैं तुम्हें अगर किये देती हैं जिसके जरिये तुम खूबसूरत से खूबसूरत औरत हूँद कर शादी कर सकते हो । नानक० । अफसोस, आज तुम इस तरह की नसीहत करने पर